*अज्ञानी की कलम*
अज्ञानी की कलम
से हमारे बड़े भाई जी प्रश्नोत्तर शायद पसंद आये*
दोहा-
सुद्धि स्वाध्य पथ चलूं,गुरू से पाऊं प्रज्ञान।
अध्यात्मिक शिक्षा सदा,गुरु चरणों में ध्यान।।
सहज परिश्रम कर कर्मयोगी वन,
मन निर्मल हर्षात।गुरुवर्य गुणी ज्ञानी से,जीवन सुर्धात।।कैसे हो सुधार इस राष्ट्र का विधाता,निज कुपथ मार्ग की शिक्षा पाता।गुरु प्रज्ञान से कुप्रज्ञानी नव पीढ़ी को,कुपथ शिक्षक शिष्य को दिखलाता।।
ज्ञान का भंडार तेरे उर में,नव पीढ़ी को प्रज्ञान उस पथ ओर चलें।गरिमा को बनाये सदा रखना,ख्याति जग जाहिर में फैलें।शिखर पतित पावन उपवन को,गुरु शिक्षार्थ शिष्य को कर देना है।कर पगों से मिट्टी गुंद गुंदके,निर्मल मन को मढ को मढ देना है।मन भाव सुधार सुसंगति से,विखरें चहुं ओर गुलशन में महक कर्म योगी बनों संकल्प लें कर,कर्महीनता त्यागो मन तुम तनक।हैं संसार का भार कंन्धों पे तेरे,भवसागर से पार करा तुम देना।ऋषि दधीचि हड्डियां दान कर,परमार्थी साधु बन जग बचा लेना।हो प्रीति की रीति बृषभान लली,निस्वार्थ भाव से हरे कृष्णा रहे।श्री गुरु चरणों नित दण्ड़वत हो,शिव शक्ति का हमपे आशीर्वाद रहे।
मधुर वाणी का आदान प्रदानकरो,सम्मान बुजुर्गो की शान रहे।
निडर होकर जीवन यापन करो,हो चाहे दुश्मन सारा संसार रहे।
भगवान भरोसे है जग सबको,सूरवीरों सी ऊर्जा भर दो।
आखरी स्वांस तक गुरु नाम जपे,अज्ञानी की इच्छा पूर्ण कर दो।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झांसी उ•प्र•