अज्ञात, नन्हें बच्चे के मन से
वो कमसीन, कली होगी, शायद, पर मैं तो था,उसका ही फूल
बिना रजामंदी सा था,मैं, या, थी कोई, अनचाही उसकी भूल
मैं कतरा, उसके खून का था, ना मांग थीं, मेरी कोई फिजूल
कोई मजबूरी थी, शायद, ना समझ सका, मैं उसके उसूल
वो मुझे, सीने से लगाकर, आँसू, आँखों से, टपकाती थीं
चुभती, कोई बात, उसे थी, पल में कर दूर, पल में पुचकाती थीं
कहती थीं, टुकड़ा हैं, कलेजे का, और वों मुझको ही, छोड़ गई
मेरी ममता, मुझसे, पल में छीन ली,क्या? मेरा कोई दोष था
चाहा था, रहूँ, ममता के आँचल में, बस, मैं तो, निर्दोष था
यूँ, सोता हुआ, तुम छोड़ गई, जगा, चहूँओर तुमको निहारा था
ढूंढ रही थीं, निगाहें तुमको, और जोर से, मन ने पुकारा था
विस्मित सा मन मेरा था, और आँख से आँसूं बहता था
तुम, यहीं कहीं, कुछ दूर होगी, हर कतरा आँसू का,कहता था
मैंने तुमसे, ना कुछ, मांगा था, ना मेरी कोई, चाह थीं
यूँ दूर कर दिया, खुद से, तुमको ना, मेरी परवाह थीं
मैं कितना रोया, कितना चींखा, और कितना,चिल्लाया था
जब मेरे माँ-बाप होते हुए,भी, मैं नाजायज कहलाया था
फिर, कुछ लोगो ने, खाकर, रहम, गोद में मुझे उठाया था
अब इस बच्चे को, कहाँ रखेंगे, प्रश्न यें ही गहराया था
कौन करेगा, पालन-पोषण, सोचा उसने, जो संग लाया था
अपनी कोख से, देकर जनम, मुझको ना तेरा, नाम दिया
माता जैसे, पवित्र,रिश्तें को, यूँ तुमने बदनाम किया
मैं कितना बेसहारा, हो गया हूँ, लग रहा भविष्य अंधकार हैं
कैसी ममता थीं, तेरी, कह रहा मन, तुझ पर धिक्कार हैं
रेखा कापसे
होशंगाबाद, मप्र