अजेय
लघुकथा
शीर्षक – अजेय
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निर्मला मेमोरियल हॉस्पिटल का उद्घाटन, सेठ रघुनंदन प्रसाद अपनी डॉक्टर बेटी के हाथो से करवाते हुए बहुत ही प्रसन्न दिखाई दे रहे थे l आज जो हॉस्पिटल बनकर तैयार हुआ था वो उनकी जीवन भर की तपस्या थी l
डाo नेहा ने हॉस्पिटल के गेट पर लगे लाल रिवन को काटकर उद्घाटन किया तो समारोह में उपस्थित लोगों ने तालिया बजाकर उनका स्वागत किया l
उद्घाटन के बाद सेठ जी ने लोगों को संबोधित करने के लिए माइक हाथ में लिया – ” मेरे प्यारे नगर वासियों यह अस्पताल सिर्फ महिलाओं को समर्पित है यहाँ पर उन्हे निशुल्क उपचार व देखभाल मिलेगी l कोई भी स्त्री जब बच्चे को जन्म देती है तब उसका खुद एक नया जन्म होता है और बहुत सी महिलाएं बच्चे को जन्म देते समय काल के गाल में समा जाती है यह बहुत दुखद है अब ऎसा नहीं होगा जैसे मेरे और न जाने कितने लोगों के साथ हुआ ”
सेठ जी की आंखो में आँसू साफ देखे जा सकते थे,,, उन्होने अपने आँसू रुमाल से पोंछे ओर पुनः बोलना शुरू किया – यह अस्पताल मैंने अपने पत्नी निर्मला की याद में बनवाया है वो मेरी हमदम, सलाहकार, प्रेयसी, मेरी दोस्त सब कुछ थी,,, वो दिन मुझे अच्छे से याद है जब मेरी बेटी के जन्म के बाद निर्मला कुछ ही समय की महमान थी,,, जब मै निर्मला से मिलने पहुंचा तो उसने मेरा हाथ अपने हाथ में थाम लिया और कहने लगी- ” रघु मै जा रही हूँ मेरी बेटी का ख्याल रखना और उसे बहुत बड़ा डॉक्टर बनाना,,, मै तुम्हें छोडकर नही जाना चाहती रघु… तुम्हें बहुत प्यार करती हूं” उसकी आंखो से आंसू बह निकले और फिर वह कुछ नहीं बोल सकी l
” तब से लेकर मेरी पत्नी, मेरे सपने और मेरी बेटी के रूप में जीवित हैं और उसे कभी मरने नहीं दूँगा, यह हॉस्पिटल हमेशा अमर रहेगा ”
डॉ नेहा ने, अपने रोते हुए पापा को गले से लगा लिया…. ~उपस्थित~ लोग तालियां बजा रहे थे और हॉस्पिटल के हॉल में लगी निर्मला की प्रतिमा, इस शानदार जीत और मौत की हार पर ~अजेय~ मुस्कुरा रही थी…… I
राघव दुबे
इटावा ( उप्र)
84394 01034