अजी! कहां का प्रेम दिवस
प्रेम दिवस उनके लिए है ,
जिनके हृदय में प्रेम की धारा बहती हो ।
समय की आंधियां जहां ,
और उम्र का असर कोई प्रभाव ना डालता हो ।
हमारे नसीब में मिला शुष्क और कठोर हृदय ,
बल्कि यूं कहे ह्रदय हीन मानव ,
ऐसे में भला कहां प्रेम हो या फिर प्रेम दिवस हो ।
भले ही यह हो पाश्चात्य संस्कृति की देन ,
मगर वो तो कोई पत्थर ही होगा ,
जो अपने प्रेम पात्र के लिए न पिघलता हो ।
रूठा हो बेशक कितना भी ,
हरजाई ही होगा जो उसे न मनाता हो ।
दूरियां हो जितनी भी परस्पर ,
भौतिक या मानसिक ,प्रेम उन्हें खींच लाता हो ।
चल मेरे मन ! तू भगवान से ही प्रीत कर ,
यह दुनिया है निष्ठुर हर जन्म बस तू ही मेरा प्रेम पात्र हो ।