अजीब दौर हकीकत को ख्वाब लिखने लगे
अजीब दौर हकी़क़त को ख्वाब लिखने लगे।
फक़त चरागों को ही आफ़ताब लिखने लगे।
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हमारे दौर के यह झूठे और फरेबी लोग।
सभी लुटेरों को इज़्ज़त मआब लिखने लगे।
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जिन्होंने जान लुटा दी वतन परस्ती में।
उन्हीं को साजि़शन खा़ना ख़राब लिखने लगे।
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गुनाह कैसे नज़र आएंगे हमें अब तो।
सभी मख़लूक का हम,अब हिसाब लिखने लगे।
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सुख़न भी बेच दिया और क़लम भी बेच दिया।
ग़लीज़ लोगों को आ़ली जनाब लिखने लगे।
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सगी़र बेच दिया ईंट भी हवेली की।
ज़मीर बेच के खुद को नवाब लिखने लगे।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच।