अज़ान और आरती -2
वहाँ पहुँच कर ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो किसी नदी के दोनो छोर जैसे मिल रहे हो। बही कुछ बच्चियाॅ आरती के लिये थाली सजाये दौड़ी चली जा रही थी। वे मन्दिर के वाहर अपनी चप्पल उतार अन्दर दौड़ गयी। और एक ओर कुछ लोग नमाज़ी टोपी लगाये, मेहरावी दरवाजे से होकर मस्जिद के अन्दर दाखिल हो रहे थे। मै मस्जिद से दो कदम आगे रूक कर सब देख रहा था। मै कभी मस्जिद को देखता और कभी मन्दिर को देखता। दोनो के प्रवेश द्वार मेरे नजरो के सामने थे। मै ये सब देख कर हक्का वक्का सा रह गया। मेरे मन में तमाम तरह के विचार खुलबुलाने लगे। अक्सर लोगो से सुन रक्खा था की फलानी जगह हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के साथ शांतिपूर्ण माहौल मे रह कर अपना जीवन व्यतीत कर रहे है। यहाँ ऐसा हो रहा है, वहाँ वैसा है…. । आज मैने ये सब अपनी आँखों से देख भी लिया। ये सब देखकर मेरी नजरो से कई परदे हट गए। एक तरह अल्ला की इबादत और एक तरफ भगवान की आरती दोनो साथ साथ।
इस तरह का मनोहर दृश्य देखकर मेरा मन एक हिन्दुस्तानी होने पर बड़ा गर्वित महसूस कर रहा था। जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते है। अक्सर देखा गया है कि कही भी सम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले शनकियों की कोई कमी नहीं होती है। लेकिन यहाँ पर सम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना नही वल्कि दोनो समुदायों द्वारा बनाने की एक नयी मिशाल पेश की जा रही है। ना मन्दिर के घंटो से किसी नमाज़ी को कोई तकलीफ होती है और ना किसी पुजारी को अज़ान से। यहाँ हिन्दू मुस्लिम एक साथ अपनी-अपनी तहजीवो के साथ रह रहे है। अव उस चिड़िया का क्या दोष जो मन्दिर से दाना चुन मस्जिद की मीनार पर जा बैठी है। उसे देख मेरे जेहन ने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि वो चिड़िया किस सम्प्रदाय, किस धर्म से बास्ता रखती है। कहीं वो आरती के बाद नमाज़ के लिये तो नही आयी है। और नजरे उसकी, जैसे वो खुद इस नीले गगन को नापने की मंशा से तैयार हो, कभी वो नन्ही सी चिड़िया सारी बंदिशो से बेखवर ऊपर गगन की ओर ताकती, और कभी अलग वगल। जैसे वो अपनी उड़ान से पहले पूरे गगन का जायजा ले रही हो। और अगले ही पल पता नही उसे क्या सूजा, वो मीनार से गोता लगा गयी। शायद उस छोटी सी चिड़िया को अपनी भूख मिटाने का कुछ सामान मस्जिद के आंगन मे भी दिख गया होगा।
आज बहुत कुछ समझा, बहुत कुछ देखा। लोग क्या चाहते है, धार्मिक परम्पराये किसी की भी आहत ना हो। लेकिन बार बार हमे बही दिखाया जाता है, सुनाया जाता है, समझाया जाता है। जिससे सम्प्रदायिकता भड़के, कुछ धर्म के ठेकेदार बड़ी बड़ी बाते मारने से तनिक भी नही डिगते। हकीकत कुछ और ही है। जनाब, जरा अपनी परिवर्तित मानसिकता की गुलामी से बाहर तो निकलो। इनको रह लेने दो ऐसे ही, वरना ना तो अल्ला तुम्हे बख्क्षेगा, और ना ही राम का नाम के साथ खेलने पर राम भी ना छोड़ेंगे। कुछ देर और, मै वही से सभी का जायजा लेता रहा। फिर उन अमन पसंद लोगो का मन ही मन शुक्रिया अदा कर अपने सफर पर आगे बड़ गया।…
(मौलिक)
दीपक धर्मा