अजबे जमाना आइल गजबे बुझात !!
विध- गीत (छंदमुक्त)
अजबे जमाना आइल गजबे बुझात !!
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अजबे जमाना आइल गजबे बुझात|
बढ़ल महंगाई मुंह दाँतो अब बन्हाता||
खाईं भात चोखा अब मिली नाहीं पुआ|
सगरो अँहार बाटे लउके खाली धुआं|
महंगी बेजोड़ बाटे करत बाटे सासत|
कहाँ ले बताईं अपना जिनगी के आफत|
घरवाँ में ढेबुआ ना खुलताटे खाता|
अजबे जमाना आइल गजबे बुझात||
नून- रोटी महंग भइल खून भइल सस्ता|
रोजी – रोजगार के भुलाइल बाटे रस्ता|
सुबहे से शाम भइल खोजतानी नोकरी|
मन करे पुका फारि हायसुकि भोंकरीं|
घेरले हतासा बाटे कुछो ना सुहाता|
अजबे जमाना आइल गजबे बुझात||
जिनगी दुभर भइल सुझे नाहीं गाना|
लोक- लाज बची कस करीं का बहाना|
बजर परे माटी मिले आजु के जमाना|
मदद केहूँ करे नाहीं देला खाली ताना|
लोर गीरे झर – झर कपरो दुखाता|
अजबे जमाना आइल गजबे बुझात||
आइल बेमारी एगो नाम ह करोना|
नोकरी के नाम पर येकरे बा रोना|
ढेबुआ ना जेबिआ में घर कइसे चली|
मुँहवा छुपाईं कहाँ, कहाँ जाके हलीं|
हाथ बाटे कपरे प राह ना सुझाता|
अजबे जमाना आइल गजबे बुझात||
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’