अजन्मा है वो,जन्मा है जो!
भादों मास की बात थी
अष्टमी की रात थी,
बरस रहे थे मेघ घनघोर,
मथुरा में मच गया था शोर,
देवकी नंदन आने को है,
आठवीं संतान पाने को है!
कैद में हैं देवकी वसुदेव,
पहरे में सैनिक हैं मुस्तैद,
पहरा कड़ा किया जा चुका था,
कंस में भय समा चुका था!
थोड़ी सी चूक भारी पड़ जाएगी,
भविष्य वाणी सच साबित हो जाएगी,
बेचैनी कंस को हलकान किए थी,
पल पल की खबर उसे मिल रही थी,
पर अचानक जो घटा, ना उसकी खबर थी,
पहरेदारों को बेहोशी , आ रही थी,
जो जहां था वह वहीं बेहाल पड़ गया,
कारागृह का ताला खुद ब खुद खुल गया,
खिड़की दरवाजे सब खुल गये थे,
आलोकित रोशनी से सब बेसूद पड़े थे!
अजन्मे ने जन्म ले लिया था धरा पे,
वसुदेव से तब उन्होंने कहा था वहां पे,
ले चलो मुझे तुम यशोदा के घर पर,
योग माया ने जन्म लिया है वहां पर,
ले आना उसे उठा कर तुम यहां पर,
छोड़ जाना मुझे तुम वहां पर!
चल पड़े वसुदेव कन्नैया लेकर,
भीगते हुए घनघोर घटा पर,
काली अंधियारी रात में निहारें,
चमकती बिजुरिया के सहारे-सहारे
कदम दर कदम पग आगे पधारें!
यमुना भी थी पुरे शबाब में,
रखा कदम जब यमुना की आब में,
नदिया का जल हिल्लौरें ले रहा था,
कन्नैया के दामन को छूने को मचल रहा था,
कान्हा ने पांव को आगे बढ़ाया,
यमुना के जल से पग को छुआया,
तब घटने लगी यमुना की लहरें,
बनाने लगी राह को ठहरे ठहरे,
वसुदेव ने तब रुख गोकुल का किया,
नन्द बाबा के घर पर कान्हा को छोड़ दिया,
लेकर योगमाया को मुड़ गये मथुरा को,
पहुंचे देवकी के पास सौंपा योगमाया को!
खिड़की दरवाजों के पट बंद होने लगे थे,
पहरेदार भी तंद्रा से छूटने लगे थे,
तभी कन्या की किलकारियां गूंजने लगी,
पहरेदारों में हलचल मचने लगी थी,
दौड़ भाग कर जाकर द्वारपाल को बताया,
देवकी के गर्भ से बच्चा है आया,
द्वारपाल ने ये बात कंस को बताई,
कंस की छठी इंद्री ने घंटी बजाई,
थोड़ी देर रुक कर फिर द्वारपाल से पूछा,
क्या कहा है तुने हो गया है बच्चा,
आ चल मेरे साथ, जहां बच्चा पैदा हुआ है,
मेरी मौत का इंतजाम इसी में हुआ है,
मैं उसे अभी के अभी मार दूंगा,
ना बचेगा जो वो तो मैं कैसे मरुंगा,
देवकी की गोद से उसे उठाया,
मारने को था आतुर तभी देवकी ने बताया,
यह तो है कन्या,बालक नहीं है,
आकाशवाणी तो मिथ्या हुई है,
मैंने कितनी ही संतानें खोई हैं भैया,
पालूंगी इसे ही मैं बनकर मय्या,
कंस को तरस आकर भी, तरस ना आया,
उठा कर उसने सिला पर पटकना चाहा,
छुट गई वह हाथों से, आसमान में विराजमान हुई,
अरे मुर्ख मुझे मारने की थी तुझको पड़ी,
मैं ना मर सकूंगी, तेरे हाथ से,
तू ही मरेगा अब, उसके हाथ से,
वो जो अजन्मा है,जन्मा है तेरा काल बनकर,
पहुंच गया है जो यहां से गोकुल पर,
वही तेरा काल, आकर तुझको मारेगा,
तेरे पाप कर्मों का फल चुकाएगा,
आया है वह तो तारणहार बनकर,
तारेगा वह दुख दर्द,अपना हमदर्द बनकर,
अजन्मा है वह,जन्म उसने लिया है,
मनुष्य का चोला धारण उसने किया है,
आया है वह धार कर मानव का गात,
करेगा वह यहां पर यथार्थ की बात,
यथार्थ को बताने-जताने वह यहां पर आया है,
अजन्मा है वो फिर भी जन्म लेकर आया है,
देवकी-यशोदा का वह नंदन कहलाता है,
वृशभानु की छोरी का वह मुरलीमनोहर बन जाता है,
ग्वाल बालों के संग माखन चुराता है,
बृज की गोरियों के साथ नटखट बन जाता है,
गो रस का वह महत्त्व बतलाता है,
अजन्मा है वह फिर भी जन्म लेकर आता है!!
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर सप्रेम नमन करते हुए ।
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