अजनबी हूं **
मैं धरा पर अजनबी हूं ,
तेरा गीत गुनगुनाता हूं ।
परदेस में तू जाकर बसी ,
दुनिया तेरे नाम हंसी ।
गढते रहूं तेरे नाम के गीत गुनगुनाता,
बुनता रहूं तेरे नाम की चदरिया ।
ओढ़ चुनरिया तेरे नाम की,
पल पल याद करूं तेरे नाम की।
जुल्म सह कर मैं खड़ा हूं ,
जहर पीकर भी पड़ा हू।
पहचान तेरी झंकार,
प्यार से कैसे करूं इंकार।
“””””””””””अंशु कवि””””””””””””””””