अच्छे दिन
आने वाला अब नया साल है
लो बीत गया दिसम्बर है
न उसको मेरी कोई खबर
न उसकी मुझको कोई खबर है
मौन अधर और खुले नयन
कैसे हो बिन नींद शयन
मन के गहरे सागर में
होता भावों का नौकायन
बस यादों तक सीमित जीवन
बस यादें आतीं रह रह कर है
आने वाला अब नया साल है
लो बीत गया दिसम्बर है
ये बात वक्त की है माना
वक्त ही बुनता ताना -बाना
लगा रहेगा आना – जाना
नहीं किसी का कोई ठौर ठिकाना
भला जहाँ में कौन हुआ
विपदा में कोई रहबर है?
आने वाला अब नया साल है
लो बीत गया दिसम्बर है
ऐ अच्छे दिन तुझसे मोहब्बत थी
तब गम से मुझको फुर्सत थी
तूँ हुआ बेवफा क्यों मुझसे
क्या मुझसे तुझको नफ़रत थी
गर तुझे भी मुझसे मोहब्बत थी
तो क्यों तुझको मेरी नहीं फ़िकर है
आने वाला अब नया साल है
लो बीत गया दिसम्बर है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी