अच्छी होती है तुम्हारी बातें
अच्छी होती है तुम्हारी बातें
जब हम दोनों सिर्फ तुम्हें सुनते है
तुम मुस्कुरा के कह जाती हो “बाकी बात बाद में”
लेकिन मैं जानता हूँ तुम्हें तुम मुझे खुद के पास बैठे देखना चाहती हो
तुम कुल्हड़ में चाय की चुस्कियां लेती हुई
एक मासूम सी बच्ची जैसी लगती हो
जो अपने अबोधपन में सारी दुनियां भूल जाया करती है
और फिर तुम्हारी सादगी भरी बातें सुनते हुए घंटो तक बैठना अच्छा लगता है
जानता हूँ तुमको, मेरे पास होना अच्छा लगता है
इसलिए जब मैं उठता हूँ तुम हाथ थाम लेती हो
बार बार कंधे पे रख देती हो अपने सर को
और पूछ लेती हो “कुछ देर और बैठ के निहार लेते है इस बहते हुए पानी को”
तुम्हारे साथ उस चाट की दूकान पे जाना अच्छा लगता है
क्यूंकि तुमको चटकारे लेते हुए देखने में अपना सुख है
तुम्हारा मेरे लिए चाट का एक हिस्सा बचा के रखती हो
और कह देती हो “अब और नहीं खा सकती” और मुस्कुराते हुए प्लेट मेरी ओर कर देती हो
जानता हूँ तुम मेरे लिए वक़्त को थाम लेती हो
ताकि हम आसमान के लाल होने तक एक दुसरे के साथ बने रहे
और फिर तुम थाम लेती हो मुझको अपने करीब
कहते हुए “आज कहीं और जाने का मन नहीं”
– शिरीष पाठक