अच्छी थी।
एक गजल आपके नज़र
1222 1222 1222 1222
तेरी चाहत में पलते पल दो पल की बात अच्छी थी।
मिले थे ख्वाब में हम तुम सनम मुलाकात अच्छी थी।
जबीं पर थे शिकन मेरे लबों पर मुस्कुराहट भी।
भले ही कश्मकश में थे मगर जज़्बात अच्छी थी।
नज़र मिलते ही तुमने जो छुपाया अपने चेहरे को।
बनाना हाथ को ऐनक यही सौगात अच्छी थी।
दहकता दिन सुलगता दिल देते यादों के साए में।
कभी ख्वाबों में तुम आए मेरी वो रात अच्छी थी।
मैं बेसुध हूं पड़ा “दीपक” खबर क्या क्या नहीं पूछो।
कहा सबने मुझे आकर तेरी बारात अच्छी थी।
©®दीपक झा “रुद्रा”