अच्छा लगा
सूखी जमीन पर अब्र गिरा तो अच्छा लगा
तेरे नाम से फोन बजा तो अच्छा लगा,
मैं तो हार ही चुका था उसे किस्मत के हाथों
वह ख्वाब में भी मिला तो अच्छा लगा,
अपनी ही लकीरें अधूरी हो तो शिकवा कैसा
भला बुरा जो भी मिला अच्छा लगा,
कुछ जख्म कुछ आह मैं लफ्जों में पिरो देता हूं
लोग कहते हैं वाह क्या शेर कहा अच्छा लगा,
मुझे खौफ था कि चाय से कहीं लब न जल जाए
इन लबों ने तेरे कदम चूमे तो अच्छा लगा,
मैं खुद भी रजामंद नहीं था नए सफर के लिए
और अब रेल ही छूट गई तो अच्छा लगा,