अच्छा लगा
तुम थी उधर खड़ी, उस मुस्कान के साथ,
पहली बार ही तो देखा था तुम्हें, पर फिर भी, … अच्छा लगा ।
क्या थी तुम्हारी आंखों में, चंचलता या चमक,
जान ना सका, पर फिर भी … अच्छा लगा ।
केह रही थी तुम कुछ, पर मैं तो सिर्फ देख रहा था,
न कुछ सुना न कुछ बोला, पर फिर भी … अच्छा लगा ।
जब तुमने खुद बुलाया मुझे नाम से मेरे,
वो नाम भी तुम्हारे मुंह से, … अच्छा लगा ।
वो जब भीड़ में तुम्हारी आंखों ने खोजा मुझे,
मैं खो गया उन्हीं आंखों में,
की नजर में तुम्हारे मैं भीड़ से अलग था, …अच्छा लगा ।
वो जब नींद में सर तुम्हारा आया सरक के मेरे कंधे पे,
मेरी नींद तो उड़ गई, पर फिर भी,… मुझे अच्छा लगा ।
वो जब दोस्तों के चिढ़ाने पर, झलकी हलकी सी मुस्कान उस चहरे पर,
पता नहीं क्यों,… पर मुझे अच्छा लगा ।
वो जब मेरी ही चिंता में रूठी तुम,
उस गुस्से को भी देख कर,… अच्छा लगा ।
-साकेत शर्मा |