अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
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बार- बार
बहुत कुछ करना
अच्छा लगता है
अब यह मत पूछना
क्या अच्छा लगता है
माँ-पापा के
लिखे पत्रों को पढ़ कर
उनमें उनके होने का
अहसास करना
अपनी अव्यवस्थित
अलमारी को व्यवस्थित करना
तुम्हारा कोई संदेश मिलने पर गुनगुनाना
तुम्हारी रह-रह कर
चाय की फरमाइश पर
पहले गुस्सा, फिर बनाना
बच्चों के बचपन में बनाये
सहेजे हुए चित्रकारी के
पृष्ठों को देखना
उन्हें छोटे से
बड़े होते हुए देखने के
दिनों को याद करना
बहुत अच्छा लगता है,
बहुत कुछ ऐसा भी है
जो पता नहीं क्यों
पर बार-बार करती हूँ
फूलों पर बैठी
तितली को उड़ा कर
पकड़ने की कोशिश,
बारिश में
गिरते ओलों को
उठा कर कटोरी में रखना
कभी पापा ने बताया था
जले पर ओलों का पानी
ठंडक देता है,
अपनी पहली प्रकाशित पुस्तक को
अपने पहले प्यार की तरह
अपने दिल से लगाना,
अपने अंदर छिपी
बच्ची को
उसके बचपने को
जीवित रखना,
ये सब करना
करने की इच्छा
बनाए रखना…यही तो
मेरे जीने का सामान है,
मेरे जिंदा होने की पहचान है..!!
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई