अच्छा या बुरा
(बाल मन पर आधारित एक लघुकथा)
शीर्षक – अच्छा या बुरा
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देश में फैल रही महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में सभी स्कूल, कॉलेज ऑफिस आदि बंद हो चुके थे l सभी लोग अपने अपने घरों में परिवार के साथ समय व्यतीत कर रहे थे l मिस्टर माथुर भी अपने परिवार के साथ लॉन में बैठे पकोड़े और चाय की चुस्कियों का आनंद ले रहे थे l पूरा परिवार कई वर्षो के बाद एक साथ चाय की चुस्कियां ले रहा था l सभी बहुत खुश नजर आ रहे थे l तभी अचानक तन्वी ने मिस्टर माथुर से एक प्रश्न किया – “पापा, ये कोरोना वायरस अच्छा है या बुरा l”
एकाएक सभी एक दूसरे का मुँह ताकने लगे तो मिस्टर माथुर ने कहा – ” बेटा पूरा देश इस संकट से जूझ रहा हैl सारे कारोवार ठप्प पड़े हैं l बहुत से लोगों की जॉब भी हाथ से निकल गई, जाहिर सी बात है यह बहुत बुरा है l”
– “लेकिन पापा, मेरे लिये तो ये अच्छा ही है l”
– ” वो कैसे मेरी गुड़िया” मिस्टर माथुर ने तन्वी को पास में बिठाते हुए कहा l
– ” पापा, मै और भैया आपसे और मम्मा से बहुत सारी बातें करना चाहते थे l आपके साथ खेलना चाहते थे l आपके साथ पिकनिक जाना चाहते थे l लेकिन जब तक आप और मम्मा ऑफिस से आते, तब तक मै सो चुकी होती l सुबह मेरे स्कूल जाने की जल्दी और आप दोनो को ऑफिस की जल्दी l किसी के पास टाइम नहीं होता हमारे लिये l दादी अम्मा भी जब बीमार होती तब भी आप लोग उन्हें अकेला छोड़ के चले जाते ”
” लेकिन बेटा तुम तो जानती हो इतना बड़ा कारोबार समय ही कहाँ मिलता हैl अगर तुम्हारी मम्मा साथ न देती तो कारोबार कब का ठप्प हो गया होता और वैसे भी हमने किसी चीज की कमी होने दी कभी l” – मिस्टर माथुर ने तन्वी की बात को बीच में ही काट कर कहा l
” लेकिन पापा मुझे ये सब नही चाहिए था l आपके साथ बैठना, बात करना, खेलना पिकनिक करना, और पेरेंट्स मीटिंग हर जगह आप लोगों को खोजती रही हूँ और हर जगह अकेला ही पाया खुद कोl” – तन्वी ने बात पूरी की l
-” आई एम सॉरी बेटा”
-” सॉरी नही पापा, अब मै इन इक्कीस दिनों में आपके साथ रह सकती हूँ, जी भर के बाते कर सकती हूँ, खेल सकती हूँ l थैंक्यू कोरोना मुझे मेरा परिवार देने के लिएl सच में पापा अब ये मकान भी घर लगने लगा हैl” – कहते हुए तन्वी अपने पापा के गले से लग गई l और पूरे परिवार के साथ तन्वी की नम आँखों से अश्रु धारा बह निकली l
राघव दुवे ‘रघु’
इटावा
8439401034