अचेतना से चेतना तक
हृदय के निलय- आलिंद को मंद पड़ने न दो
चिंघाड़ती, दहाड़ती आवाज न सही
पर बोलती हुई जिह्वा को रुकने न दो
मार्मिक दृश्य हैं, दशा दुर्दशा है,
इक टांग खींचता कोई और
दूसरी टांग खींचता कोई और
शायद, आदमी चीरा गया है
यह देख भी, बहुतों का रुधिर जमा है
तुम तो रुधिर उबलने दो
तलवार में धार नहीं,
अपनी जिह्वा को तुम बल दो
हृदय के निलय -आलिंद को मंद पड़ने न दो
चीख सको तो चीखो
बोल सको तो बोलो
मूक हो तो सांसो को यूं तेज करो, कि गूंज उठे
उनके कर्ण फटे तो फटने दो
पर उनको खुद पर लदने न दो
छलों न तुम मन को अपने
यह कह के कि, मैं तुच्छ -नग्न सा प्राणी हूं
आजादी -आजादी का नारा मत दो
आवाहन दो, अपने स्वतंत्रत विचारों को
अपनी सरस्वती को बचा कर रखो
प्रचलित विचार के धावों से
मुदित नैनों को खोले रखो
बेहलिये सब चौकन्ना
खुद को जाल सहित उड़ जाने दो
हृदय के निलय-आलिंद को मंद पड़ने न दो