*अग्र मंत्र त्रैमासिक पत्रिका* वर्ष अट्ठारह अंक 3 *(फरवरी 2022 से अप्रैल 2022)*
पत्रिका-समीक्षा
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धनी लोगों को परहेज क्यों ?
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अग्र मंत्र त्रैमासिक पत्रिका
वर्ष अट्ठारह अंक 3 (फरवरी 2022 से अप्रैल 2022)
संपादक :आचार्य विष्णु दास “विष्णु कुमार अग्रवाल” 81/10 बल्केश्वर कॉलोनी ,आगरा मोबाइल 82794 66054 प्रबंध संपादक : श्री अशोक कुमार अग्रवाल पी.पी.
उप-संपादिका: श्रीमती लता अग्रवाल, श्रीमती निवेदिता अग्रवाल
सह-संपादिका : कुमारी श्रेया अग्रवाल
बाल संपादिका : कुमारी दिव्याअग्रवाल
पत्र व्यवहार का पता : श्री अग्र महालक्ष्मी मंदिर, 33 /6/1 /ए.बी. बड़ा पार्क, बलकेश्वर चौराहा ,आगरा 282005
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48 प्रष्ठीय पत्रिका अपने आप में महाराजा अग्रसेन से संबंधित भारी-भरकम सामग्री समेटे हुए है । महाराजा अग्रसेन से संबंधित सामग्री के अतिरिक्त महारानी माधवी और महाराज विभु से संबंधित काफी सामग्री पत्रिका में है । अग्रसेन भागवत जी की आरती ,गौ माता की आरती तथा खाटू श्याम की अद्भुत कथा पत्रिका को एक वैचारिक दिशा प्रदान कर रही है । पुनर्जन्म से संबंधित 40 प्रश्न (प्रष्ठ 12 से 16) आत्मा के अस्तित्व के संबंध में अकाट्य तर्क उपस्थित करते हैं ।
जीवन दर्शन लेख में संगीता दीपक अग्रवाल ,हरदा ने ठीक ही लिखा है कि “हमारे दुख का कारण हम स्वयं ही होते हैं । अपने आप को सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण करना होगा तथा साथ ही साथ जो कुछ भी हमें हमारे अपनों ने ,ईश्वर ने ,ब्रह्मांड ने दिया है उसका क्षण-क्षण धन्यवाद करना होगा ।”(प्रष्ठ 7 )
कविताओं में इंसान शीर्षक से गीत प्रभावित करता है :-
यह दुनिया एक उलझन है ,कहीं धोखा कहीं ठोकर
कोई हँस-हँस के जीता है ,कोई जीता है रो-रो कर
जो गिर करके सँभल जाए, उसे इंसान कहते हैं
किसी के काम जो आए ,उसे इंसान कहते हैं
किसी भी पत्रिका की प्रासंगिकता इस बात से है कि वह सामाजिक महत्व के कितने महत्वपूर्ण प्रश्न उठा पाती है ? इस दृष्टि से सामूहिक विवाह के संबंध में दीपिका पोद्दार (इंदौर) का आलेख छोटा जरूर है लेकिन विचारोत्तेजक है। धनी लोगों को परहेज क्यों ? शीर्षक से आपने लिखा है -“सामूहिक विवाह दहेज पर अंकुश लगाने का सशक्त माध्यम है । पर यह निम्न वर्ग तक ही क्यों सीमित है ? ऐसा कभी बिरले ही हुआ हो कि जो समाजसेवी धनाढ्य वर्ग इसका आयोजक है उसने अपने किसी परिवार के सदस्य का सामूहिक विवाह में विवाह संपन्न कराया हो अर्थात इसका अर्थ यह हुआ कि सामूहिक विवाह आर्थिक विपन्नता का सूचक है । जब कि सामूहिक विवाह तो व्यक्ति की मानसिक जागृति और प्रगति का सूचक है । इसमें भाग लेने में शर्म और संकोच नहीं होना चाहिए। दहेज एवं विवाह में फिजूलखर्ची जैसी बुराई केवल नारे लगाने ,सभा-सम्मेलन आयोजित करने से दूर नहीं होगी। समाज में परिवर्तन दोहरी मानसिकता से नहीं बल्कि आस्था और ईमानदारी से ही लाया जा सकता है।”
आशा है अग्र मंत्र त्रैमासिक पत्रिका में जो विचार प्रस्तुत किए गए हैं ,वह अमल में लाने के लिए जागृति उत्पन्न कर सकेंगे । इसी में पत्रिका के प्रकाशन की सार्थकता निहित है ।
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समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451