अग्नि पथ के हे अग्नि वीर!
अग्नि पथ के हे अग्नि वीर,
क्यों हो रहे हो इतने अधीर,
थे अभी तक तो धीर गंभीर,
फिर क्यों अचानक ही हो गये अगंभीर,
हे अग्नि पथ के अग्नि वीर!
छूट रहा क्यों सब्र का बांध,
जो रहे सीमा सारी लांघ,
सड़कों पर रहे उगल आग,
मची हुई है भागम भाग,
ना अलापो यह बेसुरा राग,
जल कर हो रही सब संपत्तियां ख़ाक,
जाग जाओ नियंता अब तो जाग,
जगाए थे तुमने ही तो यह सब्जबाग!
हे अग्नि वीरों, ठहरो ज़रा,
धैर्य को भी थोड़ा धरो ज़रा,
क्यों खो रहे हो अपना विवेक,
जो कर रहे हो वह नहीं है नेक,
अपने भविष्य को भी तो देख,
मां बाप ने भी तो सपने संजोए हैं,
अपने मिटा कर तुम पर जुटोए हैं,
हे अग्नि वीरों ठहरो ज़रा,
धैर्य भी तो थोड़ा धरो ज़रा!
एक छोटी सी चूक डूबो देगी,
नैनों को अश्रु से भिगो देगी,
थोड़ा सा धैर्य का विचारण करो,
एक बार इसे भी धारण करो,
नहीं मिलने से कुछ तो मिल ही रहा,
संभावनाओं का भी तो आसरा भरा,
नहीं खोटा है सब,कुछ तो है ये खरा,
सोच समझ कर ही कोई कदम आगे बढ़ा,
हे अग्नि वीरों ठहरो ज़रा,
धैर्य भी तो थोड़ा सा धरो ज़रा!!