छंद मुक्त कविता : बचपन
बचपन
बचपन हूँ बचपन l
मैं बचपन हूँ बचपन ll
बड़ा ही हठीला
बड़ा ही रंगीला l
कोमल सुकोमल
स्वर में हूँ कोयल l
बड़ा ही सजग हूँ
बड़ा आफती हूँ l
कभी मानता हूँ,
कभी करता अनबन ।।
बड़ा मस्त हूँ मैं
बड़ा चुस्त हूँ मैं l
कंकर उठा कर
डराता हूँ सबको l
पेड़ो के फलभी
टपकता टप टप l
बकरी को अपनी
बनाता सवारी l
दुनिया को अपनी
समझता हूँ न्यारी l
उत्पात करता
सभी को रिझाता l
कटोरी में चम्मच
बजाता हूँ टनटन ।।
बरखा में नहाना
भाता है मुझको l
किसी से भी बदलना
आता है मुझको l
सड़क पर जमा जल
समंदर है मेरा l
चप्पल की कश्ती
खिलौना है मेराl
मल क्या अमल क्या
नही जानता हूँ l
सभी कुछ है मेरा
यही मानता हूँ l
जो भी मिले गोद
सोता हूँ सुख से l
नही कोई अपशब्द
कहता हूँ मुख से l
बड़ा ही सरल हूँ
बड़ा ही विरल हूँ l
न सुच्चा है कोई
न कुछ भी है जूठन ।।
भाषा कुभाषा
सीखी तुम्ही से l
नफरत जलन भी
देखी तुम्हीं में l
गलत और गलती भी
दी है तुम्हीं ने l
तेरा और मेरा
आया तुम्ही से l
भीगी मिट्टी सा
था आकार मेरा l
तुम्हीं से बना है
व्यवहार मेरा l
तुम्हीं से बना हूँ
तुम्ही में बढा हूँ l
चाहा था जैसा
मैं वैसा ढला हूँ l
तुम्ही से बना है
मेरा भोला तन मन ।।
नही कोई मजहब
न जाती है कोई l
करनी चालाकी
न आती है कोई l
नही दुख कोई
न डर है न गम है l
जिधर से मैं निकलूँ
उधर मैं ही मैं हूँ l
निर्मल और भोला
बना भाव मेरा l
ईश्वर के गुण से
सजाया है मुझको l
मैं मोहक साधारण
हूँ ममता का कारण l
त्रिदेवों ने भोजन को
अपनाया मुझको l
आँचल में पयपान
किया था कण कण ।।
सुशीला जोशी
9719260777