अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजे.
एक माँ की जुबानी
बिटिया मेरी प्यारी बिटिया
क्या तुझे जन्म देकर मैंने ठीक किया
जब तू मेरी कोख़ में थी
शायद तू तब तक ही सुरक्षित थी
अब तो समाज मे हर कदम कदम पर
डर हैं
सब जगह भेडिये है.. न जाने किस रूप मे
सामने आए…
घर के बाहर खेले तो डर…
स्कूल जाए तो डर
कॉलेज जाए तो डर
अगर कुछ बन जाये तो अपने स्टाफ में भी डर
न जाने वो कौन है
जिन्हें हर बच्ची में अपनी बिटिया,बहन,माँ नज़र नहीं आती
आखिर कब तक ..बच्चियां डर डर कर जीती रहेगी
या ये कहे कि डरती रहेगी
क्या लड़कियों को हमेशा ऐसा ही जीना चाहिए
क्या उन्हें हर जगह खुल कर साँस लेने का हक़ नहीं है
तो फिर गलत नहीं है …की इन्हें पैदा ही न होने दे..
रहने दो इस समाज को लड़कियों के बिना….
न लड़कियां होंगी , न डर डर के जियेगी।
आखिर क्या कसूर था उस डॉक्टर बिटिया का
या क्या कसूर था उस 6 महीने की बिटिया का
आखिर कब तक डर डर कर जिये बिटिया…
क्या कहूँ
बस यही कि अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजे……….
अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजे……….