अगर रूठी हो तो सोने चांदी से सजा दूँ
आगर रूठी हो तो सोने चाँदी से सजा दूँ
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अगर रूठी हो तो सोने चाँदी से सजा दूँ,
तनबदन कोई तकलीफ़ हाथ पैर दबा दूँ।
जुल्फें बिखेर कर यूँ न उदास बैठो सखी,
मन मे कोई कशिश तो सूट नया दिला दूँ।
कोई कसर बाकी रह गई हो धरती पर,
आसमां में चमकते चाँद तारों से मिला दूँ।
भेद आया न अब तक हमें हुस्नपरी का,
समझ आ जाए तो मैं ताजमहल बना दूँ।
मनसीरत वाकिफ़ नाज नख़रे अदाओं से,
गिले-शिकवे और शिकायतों को भूला दूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)