अगर ये लेखनी न होतो तो मेरा क्या होता
लिखते लिखते बस यूँ ही खयाल आया……….
अगर ये लेखनी न होती तो मेरा क्या होता…………..????
आजकल सुबह भी इसी से शुरू और रात भी इसी पे ख़त्म होती है
सुबह से शाम बस ये लेखनी ही मेरा पहला प्यार होती है।
ये न होती तो इन दर्दों पर दवा कौन लगाता,
मेरे मन का यूँ आप सब तक कौन पहुँचाता ???
ईश्वर की अनुकम्पा कहूँ इसे या आप सबका आशीष,
आजकल ये मेरी मित्र सी हो गई है एकदम ख़ास और अज़ीज़।
आजकल तो ये रोज शब्द रुपी नए रत्न निकलती है,
कागज़ कलम लेकर बैठूँ मैं और बस खुद ही सब लिख डालती है।
जो आजकल अनुभव कर रहा हूँ शायद इसी को सुकून कहते हैं,
न जाने कुछ लोग मनोभाव व्यक्त किये बिना कैसे रहते हैं।
अब कोई दुःख दर्द ज्यादा समय टिकता नहीं ,
कागज़ कलम साथ हो तो आजकल आसपास कोई दिखता नहीं।
कुछ लोग हैं भी यहाँ जो लेखन में अड़ंगा लगाते हैं,
पर लिखता फिर भी जाता हूँ तो मेरे समक्ष ज्यादा नहीं टिक पाते हैं।
कुछ को मेरा ये सुकून बिल्कुल रास नहीं आता है पर,
जले तो जले दुनिया इसमें मेरा क्या जाता है??? :-)))
मेरे लिए तो यूँ लिखना अब जीवन की नई राह है,
आप बस मेरा मार्गदर्शन करें क्योंकि
अच्छा लिख पाना ही अब मेरी चाह है।