अगर मैं लौट के ना आऊँ…
कवि हिर्दय है
मनमें आते रहते हैं तरह तरह के संदेशा
कभी कभी तो लगता ऐसा
इस जीवन का रहा न अब कोई भरोसा
फिर सोचा..
क्यों न तुम से भी सँझा कर लूँ
अपने मन का ये अंदेशा-
अगर मैं लौट के ना आऊँ…
तो
खो जाऊंगा, फ़िज़ाओ में
सो जाऊंगा, गहरी नींद में
विचरण करूँगा, अनंत में
एक चमकती हुई सितारें बनकर, आसमान में।
अगर मैं लौट के ना आऊँ…
तो
मेरी यादें रह जाएगी
बिता पल जो तेरे साथ
वही अधुरी बात
जो बतियाते रहते दिन- रात।
इस गृहस्थ जीवन में मिलता रहता संज्ञान
सत्य असत्य, उचित अनुचित के बोध का प्रमाण
पर ये जो आत्मा का है ज्ञान
उसे समझना होता नही आसान
हर चेतन का है अपनी अपनी कहानी
कोई होता पंडित ज्ञानी
कुछ होते मृदुल, बोलते मधुर वाणी
अलग अलग सूरत में होते सभी प्राणी
किसी किसी का रहता है अपना ही मनमानी
फ़िर भी इस उधेड़बुन की दुनिया में
कुछ बना लेते है ऊचा स्थान
जिनकी तारीफ़ करती रहती है जहान।
खैर..
अगर मैं लौट के ना आऊँ…
तब मिलेंगे सिर्फ़
एक तस्वीर में मुस्कान बनकर
अपनी कविता में पदचिह्न बनकर
फिरसे लौट आऊंगा
पवन के तरह बहकर
तुम्हारे अंतर्मन के द्वार में
तब तुम रखना मन को साफ़
और करना मुझको माफ़।
अगर मैं लौट के ना आऊँ…
प्रस्तुति:
पवन ठाकुर “बमबम”
गुरुग्राम।।
दिनांक: 09 जुलाई 2021