अगर , मुझे उसका प्यार मिला होता…
अगर मुझे उसका प्यार मिला होता…!
उसकी चलने की थाप ,
पायल की झनक होती
उसकी हंसने की अदा ,
चूड़ी की खनक होती
उसकी नजरों की गहराई ,
मचलता सागर होता
उसकी मुस्कुराने की अदा ,
खिलता कमल होता …!
अगर मुझे उसका प्यार मिला होता…!
वो मुझसे दूर होती ,
मैं बेकरार होता
वो मेरे पास होती ,
मैं बेताब होता
वो हर रात ,
एक ख्वाब होती
वो हर चमन ,
महकता गुलाब होता…!
अगर मुझे उसका प्यार मिला होता…!
वह अगर आती ,
मैं हर पल इंतजार करता
वह अगर जाती ,
मैं हर पल आहे भरता
वह अगर खफा होती ,
मैं अपने से शिकवा करता ।
वह अगर मुझे छेड़ती ,
मैं हर पल चुपचाप होता…!
अगर मुझे उसका प्यार मिला होता…!
कली कोई भी हो ,
खिलता कमल होता
फूल हो ना हो ,
महकता चमन होता
उसका प्यार मिला होता ,
ना रोते जख्म होते
वह एक रात मिली होती ,
ना हर रात बेवफा होता…!
अगर मुझे उसका प्यार मिला होता…!
वह मेरी हर शाम की ,
जलती हुई सम्मा होती
मैं उससे रोशन होता ,
वह मेरी रोशनी होती
वह भावनाओं की सर्द में ,
पूनम की चांद होती
मैं भावनाओं की तपिश में ,
सुबह का सूरज होता…!
अगर मुझे उसका प्यार मिला होता…!
ना दिन को चैन ,
ना रात को घूमता होता
ना हर गली बदनाम होता ,
ना बदनाम में इक नाम होता
ना हर जगह नाकाम ,
ना हर बाजार सरेआम होता
ना हर वक्त उदास ,
ना महफिलों में खामोश होता …!
अगर मुझे उसका प्यार मिला होता…!
चिन्ता नेताम “मन”
डोंगरगांव (छ. ग.)