अगर न माँ सोई होती (वीर अभिमन्यु )
कूद पड़ा वह चक्रव्यूह में दुश्मन की ललकार पर
द्वार तोड़ता अर्जुन सुत फिर पहुँचा अन्तिम द्वार पर
लाश गिराता बाण चलाता सरपट रथ पर दौड़ रहा
देख वीरता बालक की दुश्मन भी हिम्मत छोड़ रहा
एक-एक कर सारे अवरोधों को उसने मिटा दिया
जो भी पड़ा सामने उसकी गर्दन झट से उड़ा दिया
हर योद्धा पर भारी नन्हा लाल दिखाई देता था
सबको अभिमन्यु के वेश में काल दिखाई देता था
यूँ प्रतीत हो रहा क्रोध में शिव जी नेत्र को खोल रहे
दिखा रहे यूँ तांडव जिससे सारे दिग्गज डोल रहे
आकर के विकराल रूप में उसने घातक वार किया
रोक रहे दुर्योधन सुत लक्ष्मण को पल में मार दिया
मृत शरीर लक्ष्मण का देख दुर्योधन होश गँवा बैठा
जैसे भी हो मरे वीर सबको आदेश सुना बैठा
देख क्रुद्ध दुर्योधन को फिर इक पल भी न देर किया
द्रोण,कर्ण,दुर्योधन सँग सबने मिलकर के घेर लिया
चौड़ा हो गया सीना योद्धा का फिर शान उभर आयी
खुद को घिरता देखा होठों पर मुस्कान उभर आयी
संस्कार के वशीभूत हो कुलगौरव ने काम किया
बाण छोड़कर द्रोण चरण में हँसकर उन्हें प्रणाम किया
दौड़ उठा फिर से रथ सरपट घोड़े रस्ता बदल रहे
मिलकर भी सब एक साथ वश में करने में विफल रहे
कहा द्रोण ने जा के कर्ण से घोड़ों की रस्सी काटो
अश्वत्थामा,कृतवर्मा से बोले ध्यान जरा बाँटो
दुर्योधन सँग सबने मिलकर एक साथ आघात किया
लेकिन उस वीर अकेले ने हर पल सबको मात किया
रणकौशल यूँ देख सभी का माथ पसीना छूट गया
भीषण युद्ध के बीच अचानक रथ का पहिया टूट गया
बीच खड़ा वो तनय सुभद्रा पर न हिम्मत हार रहा
खून से लथपथ बदन हुआ फिर भी सबको ललकार रहा
देखा जब दुश्मन ने चारों ओर ही जाल बना डाला
रथ का पहिया उठा हाथ फिर उसको ढाल बना डाला
वार पे वार हुए पर न पीछे हटने का नाम लिया
दुश्मन ने तब जीत की खातिर छल का दामन थाम लिया
छल की सारी सीमाओं को कौरव पक्ष ने पार किया
पीछे से आकर के शत्रु ने अभिमन्यू पर वार किया
युद्धभूमि में मानवता की ‘संजय’ भीषण हार हुई
जब तलवार पीठ से होकर के सीने के पार हुई
तब जाकर के गिरा भूमि पर अर्जुन का वो वीर तनय
जिसने पल भर में ही मचा दी कुरुक्षेत्र में महाप्रलय
बोला तात् क्षमा करना मैं मंजिल अपनी पा न सका
माँ से कहा था आऊँगा पर लौट के वापस आ न सका
उत्तरा जन्म जब हो सुत का उसे योद्धा वीर बनाना तुम
कहना था वीर पिता उसका फिर मेरी कथा सुनाना तुम
मगर सत्य है तात तुम्हारा पुत्र किसी से न हारा
ये तो धोखेबाजों ने मुझको धोखे से है मारा
धुँधली नजरों से समीप दुश्मन को फिर आते देखा
बड़ी कुटिलता से जब उनको वीर ने मुस्काते देखा
मुश्किल से अपने नेत्रों को तब जाकर उसने खोला
और बड़े धिक्कार भाव में अंतिम बार यही बोला
युद्ध के सारे रणकौशल तुम सबको आज भुला देता
अगर न माँ सोई होती तुम सबको आज सुला देता
और आँख फिर बन्द हुई जीवन से रिश्ता तोड़ दिया
एक वीर ने बड़ी वीरता से ये दुनिया छोड़ दिया