अगर तुम न होते
अगर तुम न होते
जीवन ये मेरा, अधूरा ही रहता,
जीवन में मेरे ,अगर तुम न होते ।
मुहब्बत की अपनी अधूरी कहानी
पूरी न होती ,अगर तुम न होते ।।
भटकता ये जीवन,खटकता ये यौवन,
जो होती पिपासा तो,तरसता मेरा मन।
मुरादें भी मन की,अधूरी ही रहती,
जीवन में मेरे ,अगर तुम न होते ।।
न बादल सुहाता,न सावन सुहाता,
भले यह झमाझम,बरसते ही जाता।
भौरों का गुंजन,कोयल की ताने,
न भाता ये मौसम, अगर तुम न होते ।।
सुहाता न हमको, चंदन का लेपन,
मलय का पवन भी,मन को न भाता ।
मधुर तान भी हमको लगती न प्यारी,
सरगम में इनकी, अगर तुम न होते ।।
न मिलता सुकून, इस जहाँ मे कहीं भी,
चमन मे नहीं इस फिजा में कहीं भी।
मुझको न मिलती ,चाहत तुम्हारी,
इबादत में मेरी, अगर तुम न होते ।।
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रचना- पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित
निकेश कुमार ठाकुर
गृहजिला- सुपौल
संप्रति- कटिहार (बिहार)
सं०-9534148597