अखबार के
मौज हो गयी अब खोजी पत्रकार के
जबसे टूट गए हर मानक अख़बार के
सत्ता की हनक से निज हनक खो दिया
लिख रहा न्यूज़ अब शासन के व्यवहार से
जबसे टूट गए हर मानक अख़बार के
मित्र बन गया साहब का,भागी बन गया करतब
लिखे अच्छाई साहब में संसार के
जबसे टूट गए हर मानक अख़बार के
दुआ – सलाम में मदमस्त हो है अब तो
मिलता है साहब लोगों से हर त्यौहार पे
जबसे टूट गए हर मानक अख़बार के
सही लिखने का माद्दा बहुत में रहा नहीं
सिर्फ अच्छाई दिखती सबकी सरकार में
जबसे टूट गए हर मानक अख़बार के
-सिद्धार्थ गोरखपुरी