अखबार की खबर कविता
अक्सर होती रहती है सड़क दुर्घटनाए
कहीं ना कहीं
गांव शहरों में हर दिन
आशंकित होकर ढूंढते हैं
अपने परिचितों परिजनों के नाम
अखबार में कि
कहीं कोई अपना तो
नहीं इस दुर्घटना में क्षत वीक्षत
आश्वस्त होकर कि
कोई नहीं अपना
राहत की सांस लेते हैं
मानो कुछ हुआ ही नहीं
कितने हृदयहीन हो गए हम
और हमारी मानसिकता
स्वार्थ व अलगाव के बीच फंसकर
@ ओम प्रकाश मीना