*अखबारों में झूठ और सच, सबको सौ-सौ बार मिला (हिंदी गजल)*
अखबारों में झूठ और सच, सबको सौ-सौ बार मिला (हिंदी गजल)
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1)
अखबारों में झूठ और सच, सबको सौ-सौ बार मिला
खबरें अब बाजार हो गईं, इनमें भी व्यापार मिला
2)
अपने हाथों से रेवड़ियॉं, ऐसे बॉंटीं साहब ने
उनको देते गए राह में, जो भी रिश्तेदार मिला
3)
रूपयों को अनुदान समझ कर, खर्च समूचा कर डाला
पता बाद में चला बैंक में, आया सभी उधार मिला
4)
राजनीति में कब सिर के बल, चलना कौन शुरू कर दे
एक पुराने नेता को फिर, नया एक बाजार मिला
5)
बातें अच्छी करता था जो, सेवा-भलमनसाहत की
अपने ही भाई से उसका, मगर अलग व्यवहार मिला
6)
कुर्सी से नेता की यारी, कुर्सी इसकी सॉंसें हैं
जिस दल का भी पलड़ा भारी, यह उस ही के द्वार मिला
7)
छोटी-छोटी रोजाना की, बातों से परखो सबको
सोचो किस-किसके जीवन में, तुमको शिष्टाचार मिला
8)
पैसा केवल मैल हाथ का, आता है फिर जाता है
कहॉं सात पीढ़ी से किसके, घर धन का भंडार मिला
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451