अखण्ड भारत स्वप्न
न तीर से कटा है,
न तलवार से कटा है।
अपना ये देश देखो,
अपनों से ही बंटा है।।1।।
कितनो ने इसको रौंदा,
कितनो ने इसको लूट।
फिर भी ये मेरा देश,
सीना तान कर खड़ा है।।2।।
आए न जाने कितने,
कितने चले गए है।
दुनियां में मेरा भारत,
संस्कारों में बड़ा है।।3।।
थी बून्द आखिरी जो,
बची रग़ों में उनकी।
हर क़तरे से ही पूछो,
दम आखिरी तक लड़ा है।।4।।
बापू का था जो सपना,
हो भारत अखण्ड अपना।
“तरुण” उस दिशा में,
अनवरत ही चल पड़ा है।।5।।
स्वरचित कविता
द्वारा
तरुण सिंह पवार