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28 Jul 2020 · 1 min read

— अकड़ है, पर हस्ती —

इंसान के अंदर
अकड़ बहुत है
जबकि पता है
तेरी हस्ती तो कुछ नहीं
पानी का बुलबुला
पल में फट जाता है
गुब्बारे सी हवा
झट से निकल जाती है
एक सांस रूक जाती है
कदम आगे नहीं बढ़ाती है
फिर भी अकड़
उप्पर से पाँव तक
झिलमिलाती है
स्वभाव इतना बुरा
की बातों से गंध आती है
ओ इंसान
यह अकड़ कहाँ से आती है
अपनी हस्ती को पहचान
खुद को इंसान मान
नहीं है तेरा कुछ
फिर क्यूँ कहता यह तेरी बस्ती है
न लाया था.न ले जाएगा
सब हाथ खोल छोड़ जायेगा
लानत है तेरी सोच पर
यह अकड़ भी साथ न ले जाएगा

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
4 Likes · 8 Comments · 306 Views
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