अकड़ में रह गई हो कुँवारी तुम
अकड़ में रह गई हो कुँवारी तुम
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सुनो सजना ज़रा बातें हमारी तुम,
रखी खाली अभी सीटें सवारी तुम।
नशा छाया रहे आँखें सदा भारी सी,
सभी छोड़ी शराबें बस ख़ुमारी तुम।
चढ़ी है जान सूली पर जिन्दादिल हैं,
बनी दिल की दवाई हो दुलारी तुम।
चलो पगले जहां चाहो बुलाओ तो,
बने बंदर अनाड़ी हम मदारी तुम।
बिछाया जाल ये कैसा न बच पाये,
निशाना है लगा सीधा शिकारी तुम।
न मनसीरत छुड़ा पाया पकड़ तेरी,
अकड़ में रह गई हो ही कुँवारी तुम।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)