अक्सर आकर दस्तक देती
अक्सर आकर दस्तक देती
यादें अपने बचपन की,
सजनी पढ़ लो गीत मिलन के
कसमे तुमको यौवन की ।
मेरे संग तुम होते थे तो
दिन खुशियों में गाता था,
बगियन में नित साँझ सबेरे
मिलना कितना भाता था।
फिकर नहीं थी किसी बात की
खाने और कमाने की,
सजनी पढ़ लो गीत मिलन के
कसमें तुमको यौवन की ।
कभी रूठते कभी मनाते,
कभी घूमते इधर-उधर,
देर रात तक खेला करते
खो-खो, सकरी, सातोंघर ।
पंख लगा उड़ गया लड़कपन
बातें हुई स्वपन की ।
सजनी पढ़ लो गीत मिलन के
कसमें तुमको यौवन की ।
आज डटा हूँ आ सरहद पर
बन भारत का एक सेनानी,
जहाँ सीमायें रोज सुनाती
महावीरों की शौर्य कहानी ।
यहाँ यजन है करते योद्धा
साहस, त्याग, बलिदान की,
सजनी पढ़ लो गीत मिलन के,
पढ़ कसमें तुमको यौवन की ।
मुझे गर्व है मेरे वतन पर,
मुझे गर्व है मेरी सेना पर।
ध्वजा तिरंगा का हूँ प्रहरी,
गर्व है मुझको वर्दी पर।
हिंदुस्तान का फौजी होना
बात सदा इतराने की।
सजनी पढ़ लो गीत मिलन के
कसमें तुमको यौवन की ।
बचपन तो बचपन होता है
एक दिन सभी का जाता है,
जीवन भर का ताना-बाना
बचपन ही बुन जाता है।
अभी समय है दोनों माँ के
दूध का कर्ज चुकाने का,
सजनी पढ़ लो गीत मिलन के,
कसमें तुमको यौवन की ।
गत स्मृतियाँ आती तो हैं
लेकिन तमन्ना शेष यही,
काम पड़े जब मेरे लहू का
पग न काँपे कभी कहीं।
सृजन का संकल्प यही है
यही बात दुहराने की।
सजनी पढ़ लो गीत मिलन के,
कसमें तुमको यौवन की ।
-सतीश सृजन