अक्षर-अक्षर टूट चुका है
अक्षर-अक्षर टूट चुका है शब्दों की इस डोरी से।
प्रेम के बंधन ढीले पड़ गए आंसू बहते, चोरी से ।
टूट टूट कर बिखरे मन में चुभने लगे हैं खंजर से।
चोट लहर की ऐसी है कि साहिल डरे समंदर से ।
तेरे पियारे शब्दों ने फ़िर घाव कर दिया सीने में।
डरता है यूँ हलक मधु से जलन होती है पीने से।
जोड़ना चाहूँ हर्फ-हर्फ मैं भूली बिसरी यादों से ।
दरद कलेजे में क्यूं उठता है तेरे अधूरे वादो से।