अक्षम
यह एक पेड़ की टहनी
पत्तों से लदी है
गर्दन इसकी झुकी है
सांस इसकी रुकी है
चेहरे पर इसके तनाव है
मन भी इसका उदास है
फूलों की खुशबुओं से तो
हरदम महकती है फिर
जीवन में किस मुकाम की इसे
अब तलाश है
चंदनबन में रहते रहते
चंदन की लकड़ी सी तो बन गई है
चाहती थी या नहीं चाहती थी
जाने अंजाने पर
महकते उपवनों के जाल में तो
फंस गई है
इससे बाहर निकलना चाहती है या
इन सबके बीच रहना चाहती है
यह निर्णय लेने में नहीं सक्षम है
तभी इतनी विनम्र है
जीने की कला में अभी भी दक्ष नहीं
निपुण नहीं
आत्मविश्वास की भी कहीं कमी
है
जीवन गुजर जायेगा
जीवन को समझने में अभी भी
अक्षम है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001