Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Oct 2022 · 1 min read

अक्टूबर मे ढमढम (बाल कविता)

अक्टूबर मे ढमढम (बाल कविता)
**************************
बादल आए , पानी बरसा
अक्टूबर में ढमढम,
गर्मी रानी बोली रोकर
अब समझो हम बेदम

एसी बंद करो
पंखे को दिन में सिर्फ चलाना,
आएगा अब नहीं पसीना
मूँगफली बस खाना

रोज रात को हुई जरूरी
गरमा-गरम रजाई,
कुल्फी के दिन गए
चाय की चुस्की मन को भाई
***********************
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

324 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

*शिव विद्यमान तुम कण-कण में, प्रत्येक स्वरूप तुम्हारा है (रा
*शिव विद्यमान तुम कण-कण में, प्रत्येक स्वरूप तुम्हारा है (रा
Ravi Prakash
स्त्री हो तुम !
स्त्री हो तुम !
Roopali Sharma
😊नया नारा😊
😊नया नारा😊
*प्रणय*
मुस्कान
मुस्कान
seema sharma
कर
कर
Neelam Sharma
तुम आना
तुम आना
Dushyant Kumar Patel
आज कहानी कुछ और होती...
आज कहानी कुछ और होती...
NAVNEET SINGH
*चाँद को भी क़बूल है*
*चाँद को भी क़बूल है*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
सांसों का थम जाना ही मौत नहीं होता है
सांसों का थम जाना ही मौत नहीं होता है
Ranjeet kumar patre
2822. *पूर्णिका*
2822. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बचपन
बचपन
Sneha Singh
"सबको जोड़ती हमारी संस्कृति एक"
Dr. Reetesh Kumar Khare डॉ रीतेश कुमार खरे
- राहत -
- राहत -
bharat gehlot
*दिव्य भाव ही सत्य पंथ है*
*दिव्य भाव ही सत्य पंथ है*
Rambali Mishra
शायरी - गुल सा तू तेरा साथ ख़ुशबू सा - संदीप ठाकुर
शायरी - गुल सा तू तेरा साथ ख़ुशबू सा - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
प्रकृति की गोद
प्रकृति की गोद
उमा झा
साँची सीख
साँची सीख
C S Santoshi
* का बा v /s बा बा *
* का बा v /s बा बा *
Mukta Rashmi
हादसे इस क़दर हुए
हादसे इस क़दर हुए
हिमांशु Kulshrestha
कुण्डलिया दिवस
कुण्डलिया दिवस
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सोना बन..., रे आलू..!
सोना बन..., रे आलू..!
पंकज परिंदा
तेवरी
तेवरी
कवि रमेशराज
श्याम जी
श्याम जी
Sukeshini Budhawne
मानव धर्म प्रकाश
मानव धर्म प्रकाश
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
आभास (वर्ण पिरामिड )
आभास (वर्ण पिरामिड )
sushil sarna
टन टन
टन टन
SHAMA PARVEEN
अंधेरे से लड़ो मत,
अंधेरे से लड़ो मत,
नेताम आर सी
*गरीबी में न्याय व्यवस्था (जेल से)*
*गरीबी में न्याय व्यवस्था (जेल से)*
Dushyant Kumar
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
'अशांत' शेखर
जाने कब पहुंचे तरक्की अब हमारे गांव में
जाने कब पहुंचे तरक्की अब हमारे गांव में
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
Loading...