अकेले – अकेले
(((( अकेले-अकेले ))))
हम हैं, अकेले ही सही,
हम अकेले चले ये जग जीतने !
जब आस जगे, बिश्वास जगे,
तब जाके यहाँ कोई बात बने !!
लोग झूठ कहे, ये बात बात रहे,
चना चले अकेले भांड़ फोड़ने !
एकला चलो रे, एकला चलो रे,
अकेला चलो रे, अकेला चलो रे !
कवि रवींद्र कहे, हम सब ही सुने,
तब जाके यहाँ कोई बात बने………
मकड़ी दम भरे, फिर वो चल पड़ेे,
फिर वो गिरे-उठे, तब जाके ऊँचे चढ़ेे !
मेहनत से ना डरे, सौ बार मेहनत करे,
कसम ले यही वो चाहे जिए या मरे !
जब ठान ले, चल पड़े जीने-मरने,
तब जाके यहाँ कोई बात बने …..
मकड़ी जो कहे वो चींटी भी सुने,
वो भी मकड़ी की जैसी राह चुने !
सब मिल कर हमें ये संदेश ही देते,
जो हारे यहाँ वो मरे रहे जिंदा जो जीते !
कर लो वही जो तेरे मन में बने-ठने,
तब जाके यहाँ कोई बात बने……….
दिनेश एल० “जैहिंद”