अकेला था — सुन घबरा गया
नयनो का नीर पथरा गया
काया का खून कजरा गया
कब तक राह निहारु – पुकारू
अकेला था सुन घबरा गया
पंछी गाते रहे
उड़ते आते जाते रहे
रात का अंधेरा गहरा गया
अकेला था सुन घबरा गया
सुनसान वन थर थर कापे मन
बस
यादों में तेरा चेहरा
हृदय पर लहरा गया
अकेला था सुन घबरा गया
भोर हुई जागा —तेरे पीछे भागा
थामा मुझे जज्बातों ने
भीड़ को हंसता देख
मैं शरमा गया
अकेला था सुन घबरा गया
“राजेश व्यास अनुनय”