अकेला गया था मैं
अकेला गया था मैं ,ढूंढने नयी मंजिलें।
लोग साथ जुड़ते गये,बन गये काफिले ।
बहुत ही मुश्किल रहा , माना मैंने ये सफ़र,
खुदा की हुई रहमत , टूटे नहीं मेरे हौसले।
राह में मिलते रहे , मुझे बहुत से अजनबी,
अपने बनते गये ,सजने लगी थी महफिलें।
रास्ते हसीन हो तो ,मंजिल की जरूरत नहीं
कब हरा पायेगी ,मुझ को फिर ऐसी मुश्किलें।
और कितना तड़पाएगी, तू मुझे ऐ जिन्दगी
हिम्मते मर्दा मददे खुदा, करें फतह हर किले।
सुरिंदर कौर