अकेलापन
अकेलापन
सिमरन तेईस साल की थी और उसकी मृत्यु हो गई थी । दबी दबी आवाज़ों से यह पता चला था कि आत्महत्या का केस था। बहुत से लड़कों के साथ दोस्ती हुई थी , पर किसी के भी साथ ज़्यादा निभा नहीं पाई थी , बहुत दिन तक उसका विश्वास किसी पर टिक नहीं पाता था । कोई कह रहा था ,
“ कितना डर लगता है आजकल के बच्चों की ऐसी हालत देखकर ।”
“ इतने पढ़े लिखे माँ बाप, इतनी धन संपदा , फिर भी अपनी इकलौती संतान को सँभाल नहीं पाये ।” किसी और ने जोड़ा ।
दरअसल सिमरन के मां बाप सरिता और राकेश दोनों दिल्ली के निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से थे । पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे राकेश ने मौलाना आज़ाद से एम बी बी एस किया था और सरिता ने रोहतक मैडिकल कालेज से । इसके बाद दोनों के माता-पिता ने टाइम्स आफ़ इंडिया में विवाह के लिए विज्ञापन दे दिया था । दोनों डाक्टर है, एक मुलाक़ात में विवाह तय करने के लिए काफ़ी था , एक सप्ताह में दोनों का विवाह हो गया और वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले आए । दोनों कुछ वर्षों तक बहुत व्यस्त रहे , समय के साथ सरिता बच्चों की डाक्टर बन गई और राकेश रेडियोलोजिसट। दोनों। वाशिंगटन में सैटल हो गए, धन बरसने लगा, और जब वे दोनों तैंतीस के हुए उनके जीवन में सिमरन आ गई । एक बच्चा काफ़ी है , यह भी तय हो गया ।
सरिता सिमरन को बेबी सिटर के भरोसे छोड़ काम पर जाने लगी । सिमरन की बेबी सिटर सोफ़ी यूक्रेन से थी , उसे बहुत अच्छी अंग्रेज़ी नहीं आती थी , पर कलाओं में उसकी बहुत रूचि थी , उसने उसे कठपुतली के खेल से लेकर संगीत आदि सब सिखाना शुरू कर दिया । सिमरन टूटी फूटी अंग्रेज़ी बोलती परन्तु जर्मन, लैटिन, और रशियन भाषा के उसे कुछ गाने याद हो गए थे ।
राकेश और सरिता के लिए यह सब बकवास था , कलाओं में इतनी रूचि का अर्थ था , भविष्य बर्बाद करना , सौभाग्य से उसे एक अच्छे डे केयर में स्थान मिल गया , सिमरन को सोफी की बहुत याद आती थी , पर वह समझ रही थी कि सिमरन से कुछ तो गलती हुई है , इसलिए उसे सोफ़ी से दूर कर दिया गया है । वह तीन साल की थी और यह बात किसी से कह नहीं पा रही थी ।
रविवार का दिन था , किसी कारण से सोफ़ी सरिता से मिलने आई , सिमरन का मन था कि वह भागकर उससे गले मिले , परन्तु उसे डर था कि सरिता को कहीं यह ग़लत न लगे । वह उसके आसपास प्रायः चुपचाप ही रही ।
सोफ़ी के जाते ही सरिता ने राकेश से कहा ,” सिमरन डे केयर में खुश है , आज सोफ़ी को देखकर ज़्यादा खुश नहीं हुई, अब उसकी अंग्रेज़ी भी ठीक हो रही है , और धीरे-धीरे वह फ़ालतू से गाने भी भूल रही है । “
राकेश यह सुनकर भावुक हो उठा , उसने सिमरन को गोद में लेकर कहा , “ मेरी इंटेलीजेंट बेटी , एक दिन तुझे माँ पापा दोनों से अधिक सफल होना है “ फिर सरिता को देखकर कहा , “ इसे मैं वह सब कुछ दूँगा जो हमें नहीं मिला , सारे ऐशो-आराम इसके कदमों पर रख दूँगा , महारानी की तरह बड़ा करूँगा ।”
सरिता सुनकर निहाल हो गई, सिमरन भी खुश थी , उसे लगा उससे ज़रूर कुछ अच्छा हुआ है ।
सिमरन को प्राइवेट स्कूल में डाला गया , परन्तु यहाँ भी उसकी रूचि कलाओं में बनी रही , उसे कहानियाँ सुनाना , नृत्य करना यूँ ही सहज आता गया । संगीत के अध्यापक को लगता कि वह जीवन में कुछ बन सकती है , परन्तु बाक़ी विषयों में वह कुछ विशेष नहीं कर पा रही थी । सरिता और राकेश परेशान रहने लगे , अमेरिका में रहने की वजह से हाथ नहीं उठा पाते थे , पर अपशब्दों की बौछार कर देते थे । राकेश कहता ,
“ सड़क पर गा गाकर क्या भीख माँगेगी !”
सरिता कहती , “ मेरी तो नाक कटायेंगी, परिवार में सब इससे आगे बढ़ जायेंगे और यह पीछे रह जायगी ।”
सिमरन सब भूलकर विज्ञान में रुचि लेने लगी , परन्तु न जाने क्यों उन पुस्तकों से उसे धीरे-धीरे वितृष्णा होने लगी , उसे लगता वह इन्हें फाड़कर भाग जाये ।
एनुअल फ़ंक्शन पर सिमरन ने गाना गाया तो उसके अध्यापक ने सरिता से कहा , “ आपकी बेटी बहुत गुणी है , इसे एडवांस ट्रेनिंग के लिए भेजिए । वापिसी पर राकेश ने कार में कहा ,
“ ग़ौरों को क्या फ़र्क़ पड़ता है , ऐसी राय देने में , इनके लिए तो पढ़ाई लिखाई की कोई क़ीमत ही नहीं । अमीर देश है , बस जो मन में है कर लो ।”
पीछे बैठी सिमरन ने इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की , अब उसे इन सब की आदत हो गई थी , परन्तु अचानक सरिता ने कहा ,
“ डाल देते हैं न एडवांस ट्रेनिंग में , वैसे भी डाक्टर बनने के तो कोई लक्षण नज़र नहीं आ रहे , क़िस्मत होगी तो कहीं पहुँच जायगी ।”
सुनकर सिमरन का मन खिल उठा , उसने मन ही मन सोचा कि वह इतनी मेहनत करेगी कि माँ पापा को उस पर गर्व होगा ।
वह बारहवीं में थी , उसके मित्र की बहन की शादी थी और वह चाहती थी वह विवाह में गाना गाये , जिसकी पेमेंट भी उसे मिलेगी । पैसा कमाने का यह पहला अवसर था और इससे आगे के रास्ते खुलने की उम्मीद भी थी । उसने घर में बताना ज़रूरी नहीं समझा, और ‘हाँ ‘कर दी । प्रैक्टिस के लिए वह स्कूल में ही देर तक रूक जाती । विवाह के दिन वह झूठ बोलकर घर से निकल गई । वह गिटार पर गाना गा रही थी , और उसका मित्र पियानो बजा रहा था , लोगों को बहुत पसंद आ रहा था कि अचानक उसकी नज़र अपने माँ बाप पर गई , जिनके चेहरे पर तनाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था , वह वहीं रुक गई, गाना असंभव हो गया और वह वहाँ से भाग निकली ।
वहाँ से वह घर नहीं गई, यूँ ही सड़क पर, बगीचे में , माल में यहाँ से वहाँ समय गुज़ारती रही । उसे समझ नहीं आ रहा था , उसके मां बाप वहाँ कैसे निमंत्रित थे , और अब घर में उसे जो अपमान सहना पड़ेगा , वह सोचकर ही वह क्रोध से भर रही थी ।
देर रात उसके पापा उसे ढूँढते ढूँढते पार्क के उस कोने में आ पहुँचे जहां वह बैठी थी ।
“ घर चल ।” उन्होंने धीरे से कहा ।
वह चुपचाप आकर बैठ गई ।
वे दोनों कुछ देर चलती गाड़ी में चुपचाप बैठे रहे , फिर राकेश ने कहा ,
“ फ़ोन कहाँ है तेरा ?”
सिमरन ने जवाब नहीं दिया ।
“ खाना खाया ?”
कोई जवाब नहीं ।
राकेश चुप हो गया ।
घर पहुँचते ही उसने अपनी माँ को दरवाज़े पर पाया ,रो रोकर उसकी आँखें सूजी थी । देखते ही सिमरन का पारा चढ़ गया , वह सीधे किचन में गई, फटे हाल भिखारी की तरह जो उसके हथ लगा , खा लिया , और सीधे अपने कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद करके सो गई ।
पूरे बारह घंटे बाद जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा , सुबह के चार बजे है, वह उठकर बाहर आ गई , देखा, माँ सोफ़े पर सोई है , यानि रात को पति पत्नी का झगड़ा हुआ होगा और झगड़े का मुख्य विषय मैं रही होंगी, उसने मन में सोचा , और न जाने क्यों उसके चेहरे पर एक व्यंग्य पूर्ण मुस्कराहट आ गई । उसने बार से विस्की निकाली और अपने लिए एक पैग बनाया, इस तरह अकेले पाँव ऊपर करके पीने से उसे एक तरह की ताक़त महसूस हो रही थी। धीरे-धीरे उसे यह समझ आ रहा था कि अब उसकी उम्र अपने माँ बाप से डरने की नहीं रही , बल्कि वह यदि चाहें तो इन दोनों को छोड़कर जा सकती है । गाना गाकर वह अपने लिए थोड़ा कमा सकती है ।
उसके बाद उसने स्कूल जाना छोड़ दिया, वह सिटी सेंटर में जाकर गाती और उनसे मिले पैसों से शराब ख़रीदती ।
राकेश और सरिता समझ गये कि सिमरन उनसे दूर जा रही है । दोस्तों , रिश्तेदारों से वे अपनी व्यथा कहते , पर सिमरन के अवारा होते कदम रोकना मुश्किल था । सरिता सोचती , शायद मुझे उसके साथ घर रहना चाहिए था , राकेश सोचता , उसकी क़िस्मत ऐसी क्यों है ।
एक दिन राकेश और सरिता ने सिमरन से कहा ,” तुझे यदि संगीत इतना पसंद है तो क्यों नहीं किसी अच्छे स्कूल से शिक्षा ले लेती , तूं जितना चाहे सीख सकती है ।”
पहले तो सिमरन को ग़ुस्सा आया कि ये दोनों मेरे पर अहसान जता रहे हैं , फिर उसे लगा , क्यों न संगीत को आगे बढाया जाय । उसने न्यूयार्क में एडमिशन ले लिया, घर से जाते हुए वह इतनी खुश थी कि उसने माँ पापा से कहा ,” एक दिन आपको मुझ पर गर्व होगा ।”
राकेश और सरिता के मन का बोझ उतर गया , उन्हें लगा , बस अब सब ठीक है ।
परन्तु सिमरन की जब कक्षायें आरम्भ हुई तो उसने देखा, वहाँ पर कितने टेलंटिड बच्चे है, उसे लगने लगा , वह माँ पापा को दिया अपना आश्वासन निभा नहीं पायेगी । उसकी यह हालत उसकी एक अध्यापिका ने देखी तो उसकी ओर विशेष ध्यान देना आरंभ किया , धीरे-धीरे उसकी मनःस्थिति बेहतर होती गई और वह परिश्रम करने लगी , परन्तु न जाने क्यों , जब कभी सबके सामने गाना होता तो वह मन में ठान लेती कि आज बहुत अच्छा गाऊँगी, वीडियो भेज कर , माँ पापा को अपने टैलेंट से आश्चर्यचकित कर दूँगी , परन्तु जब वह स्टेज पर होती तो गाने के बीच ही अचानक उसे उनके तनावपूर्ण चेहरे नज़र आने लगते और धीरे-धीरे उसका गाना ख़राब होता जाता ।
अब वह रोज़ शराब पीती थी , उसके अंदर इतना ख़ालीपन था कि उसके रिश्ते बनते बिगड़ते रहते थे , इस पूरी दुनिया में उसे कोई अपना नहीं लगता था । शुरू में लड़कों से दोस्ती, सैक्स यह सब उसे अच्छा लग रहा था , परन्तु धीरे-धीरे वह भी उबाऊ हो गया था ।
राकेश ने उसको फिर से खड़ा करने के लिए एक ओडिटोरियम बुक किया । सिमरन ने फिर अपने माँ पापा को नई ऊँचाइयाँ छूने का वचन दिया , परन्तु कार्यक्रम पूरी तरह असफल रहा , न विशेष श्रोता ही आए और न ही सिमरन कुछ विशेष गा पाई । राकेश ने कहा , “ कोई बात नहीं , ऐसा होता है , फिर कोशिश करना ।”
सरिता ने कहा, “ मुझे तो अच्छा लगा तुम्हारा गाना, सच पूछो तो पहली बार लगा , मेरी बेटी में इतना टैलेंट है । “
सिमरन ये बातें सुनकर सहज हो गई, और , और मेहनत करने के इरादे से अपने कमरे में चली गई ।
अगली सुबह सिमरन अपने कमरे से बाहर आ रही थी , जब उसने सुना ,माँ कह रही थी ,” भगवान सब कुछ तो नहीं देता न , सारे सुख दिये , पर संतान निकम्मी निकली ।”
“ हमने तो सब करके देख लिया , अब जो ऊपर वाला चाहेगा वही होगा , हम क्यों अपनी ज़िंदगी बर्बाद करें ।” राकेश ने ठंडी साँस भरते हुए कहा ।
सिमरन उन्हीं कदमों से लौट गई । उसका क्रोध और अकेलापन इतना बड गया कि उसने सुबह ही बोतल खोल ली , नशे में उसने अपनी नस काट ली, और यूँ ही , उसे मौत आ गई ।
पुलिस की खोजबीन जारी थी । सरिता और राकेश की थैरपी चल रही थी , वे धीरे-धीरे समझ रहे थे , उनका विवाह दो व्यक्तियों का नहीं, दो प्रोफेशनलस का था, उन्होंने जीवन में यह प्रश्न कभी पूछा ही नहीं था कि मनुष्य होना क्या है और अगली पीढ़ी को यह प्रश्न कैसे संप्रेषित किया जाये , उनके जीवन की इस कमी का असर सीधे उनकी बेटी पर पड़ा था , जो अपने आप को ढूँढ रही थी , और बिना किसी सहारे के थी ।
…. शशि महाजन
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