अकेलापन
फुल हो तुम किसी डाळ का कांटा बन तनता रहा
किसी भौरे का रसपान तुझे क्यो ना बरदास था |
मन में हो अगर गहरा प्रेम तो उससे इजहरार कर
अपने मन का भार तो हल्का कर लेना चाहिए
वरना जमाना बदस्लुकी की कोक से निकलकर
विश्वास की पीठ पर विश्वासघात का खंजर रख लेता है
कांटो के संग रहकर कांटो से जुलसना
तुझ गुलाब को शौभा नही देता है
कांटो को भय नही, सूरज की तपन से जुलसने का
इरादा उनका मजबूत है तेरे अपनों से उलझने का
मालूम है उनको आज नही तो कल
दिखावती दुनिया से उनको बिखर जाना है
फिर तेरे प्रेम में साथ रहकर तेरे संग से
एक दिन तेरे संग उस विश्वप्रेमी के हाथो से निखर जाना है
कांटो का क्या है वजूद इस जमाने में
बिन गुलाब बिना महक के
बचपन से रख मन में मा बाप के तानो का भार
महसूस कर अकेले पन को तेरे संग भूल जाऊंगा