अकेलापन
“अरे वाह पिताजी।आपने तो फेसबुक और व्हाट्सएप चलाना भी सीख लिया।बहुत-कुछ पोस्ट करने लगे हैं आजकल आप और फ्रेंड लिस्ट भी बढ़ने लगी है आपकी।”बेटे ने घर आते ही पिताजी से हँसते हुए अपनी बात कही तो पिता ने फीकी हँसी हँसते हुए कहा,”हाँ, तुम सभी लोग तो व्यस्त ही रहते हो।मुझसे बात करने की फुरसत ही कहाँ है?इसलिए इन माध्यमों के द्वारा अपने अकेलेपन को दूर करने का प्रयास करता रहता हूँ।”
“अब देखो न,तुम सभी घर पर ऑनलाइन हो या ना हो,सोशल मीडिया पर हमेशा ऑनलाइन ही रहते हो न।वहीं सही, बात तो कर लेते हो अथवा जवाब ही दे देते हो।इसी में संतुष्ट हो जाता हूँ।इससे ज्यादा की अब अपेक्षा भी नहीं रही।”अबकी बार पिताजी की आँखें नम थीं और बेटा साइलेंट मोड पर जा चुका था।