अकाल
धरती की संतानें देखो कलयुग की काली छाया।
और देख लो यह अकाल जीवन पर कैसे आया।
है अकाल जीवन पर ऐसा प्राणवायु भी पानी है।
स्वार्थलीन मन भावों पर छल कपटों की मनमानी है।
पुण्य दृश्य कुदृश्य हुए हैं गौ माता के आंसू से।
और उसी आंसू से पापों का गागर भर आया।
धरती की संतानें देखो कलयुग की काली छाया।
और देख लो यह अकाल जीवन पर कैसे आया।
अभी हवा में ज़हर घुला पानी में घुलना बाकी है।
और ज़हर माटी में बस थोड़ा सा मिलना बाकी है।
काट काट के पीपल बड़गद न्योत रहे प्रदूषण को।
स्वार्थ लिन निर्जीव जीव क्या मैंने झूठ बताया।
धरती की संतानें देखो कलयुग की काली छाया।
और देख लो यह अकाल जीवन पर कैसे आया।
पुण्य पथों पर चलने वाले तुमको यहां अखरते हैं।
और फूल सा मन चितवन तेरे आंखों में गड़ते हैं।
जो गुलाब को छेड़ोगे तो कांटे तुम्हें चुभेंगे।
आज देख लो चंदन खुद ही सर्पों को लिपटाया।
धरती की संतानें देखो कलयुग की काली छाया।
और देख लो यह अकाल जीवन पर कैसे आया।
©®दीपक झा “रुद्रा”