” अकाल्पनिक मनोस्थिति “
” अकाल्पनिक मनोस्थिति ”
आधी के आस पास बीत गई है उमरिया मेरी
उछलती कूदती शरारत करती रहती सारे दिन
सभी कहते एनर्जी का पॉवर हाऊस है मीनू तो
डॉक्टर से शायद ही कभी मेरा पाला पड़ा था,
2023 में एक दिन आई थी बहुत मनहूस घड़ी
अजीब सी औरत दफ्तर में रहने जो आ गई थी
मीनू कैसे बोलती है, कैसे शान से चलती है देखो
पगलाई सी ये गीत सारे दिन गुनगुनाती रहती थी ,
कभी बोलती मीनू 16 पर ए सी चलाती है देखो
कभी मेरे रहन सहन के पीछे पागल हो जाती
कभी कहती मीनू की आवाज कितनी दमदार है
राम जाने इतनी अजीब हरकत क्यों करती थी,
मेरी हर गतिविधि में घुसने की कोशिश करती
वाणी निकालती जो पूरी हो जाती पता नहीं क्यों
जकड़ लिया मीनू को अंधविश्वास की जंजीरों ने
एक अजीब सी नफरत उससे मुझे हो चली थी,
गर्भावस्था में भी तकलीफ नहीं झेली थी कभी
आज लेकिन अस्पताल के दरवाजे को छू लिया
कुवाणी ने ऐसा धर दबोचा था फिर पूनिया को
तभी अजीब बैचनी सी हरदम रहने लगी थी,
एसी के पीछे पड़ी तो जुकाम ने घेर लिया जी
बोलती बंद हो गई जब आवाज के पीछे पड़ी
बिना ही बीमारी सर्जरी की नौबत आन पड़ी
ना कोई लक्षण दिखे ना ही कोई तकलीफ थी,
मां बोली नजर लगाई मेरी शेर बेटी को किसने
सास अपने स्तर से प्रयास करे सही करने का
राज के तो हाथ पांव फूले क्या बला आ गई
हरदम चहकने वाली मीनू शांत जो हो गई थी,
पहली बार दवाई का स्वाद चखा है जीवन में
गोलियां खा खाकर पूनिया का सिर चकराए
हे प्रभु ऐसे इंसान से दोबारा कभी ना मिलवाना
ना जिऊं ना जीने दूं, जिसने धुन अपनाई थी।