“अकर्मण्य व्यक्ति की नकारात्मक सोच “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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इन समाजों में भी निष्क्रिय लोगों का स्थान व्याप्त है ! हमारे प्रगति के हर कदम की आलोचना करना उनका धर्म बन गया है ! दूसरों के मकान बनते देख मन में ईर्षा होने लगती है ! हम पहुँच जाते हैं वहाँ और कहते हैं ” भाई ,यह क्या बना रहे हो ? गाँव की परंपरा का निर्वहन करो ! शौचालय दूर होना चाहिए ,बैठक खाना इधर होना चाहिए इत्यादि इत्यादि ! लोग अपनी परियोजना अपने अनुसार करते हैं कुछ लोग अपनी अकर्मण्यता की दलीलें दे तो देते हैं पर उसे मानता कौन है ? सामाजिक गतिविधियों पर इनकी निगाह जमी रहती है ! यज्ञ ,शादी -विवाह , पूजा -प्रतिष्ठान इनको फूटी आँखें सोहाती नहीं है ! समय मिला लगे बाल के खाल उधेड़ने ! यज्ञ क्या ऐसा होता है ? विधि विधान को सब भूल गए ? विवाह क्या हुआ मखौल हो गया ! बच्चे बिगड़ते जा रहे हैं ! कभी उनकी आलोचना कभी उनकी भर्त्सना दिन उनके गुजरते हैं ! जीवन के पग पग पर इस तरह के लोग मिलते हैं ! पर इनकी मान्यता समाज के हरेक वर्ग इन्हें शकुनि माना जाता है ! फ़ेस बूक के रंगमंचों पर भी इनका नंगा नृत देखने को मिलता रहता है ! आलोचनाएँ तो इनके सर चढ़ बोलती है ! इन्हें किन्हीं के भाषाओं से इतराज होता है ! किसी के उपलब्धियों से इनको ईर्षा होने लगती है ! विभिन्य भंगिमाओं की तस्वीरें देख कर हृदय पे साँप रेंगने लगते हैं ! अपनी सकारात्मक सोच को कथमपि पनपने देंगे ! इन विचार धाराओं के लोगों को ना समाज में मान्यता मिलती है ना फ़ेस बूक के रंगमंचों पर ! सामाजिक बहिष्कृत के उपाधिओं से ये बच नहीं सकते ! जमाना बहुत बदल गया है ! जिसे जो अच्छा लगता है उसे वो करने दें ! आप क्या हैं यह आलोचना ,परिहासों के दायरे में रहकर लोगों को नहीं समझा सकते ! आपके बोल ,आपके सकारात्मक सोच ,आपकी शालीनता ,आपके विचार ,आपकी शिष्टता ही आपको श्रेष्ठ बनाती है बरना मिर्जाफर को भी लोग याद करते हैं ! अब हमें सोचना है कि हम क्या बने !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
दुमका
झारखंड
भारत