अंहि टा एकटा नीक लोक छि (हास्य कविता)
अहिंटा एकटा नीक लोक छि .
(हास्य कविता)
“कारीगर” कतेक दिन बाद परीक्षा पास केलक
ओ त बड्ड बुडिबक अछि
अहाँ त बड्ड पहिने बड़का हाकिम बनि गेलौहं
ताहि द्वारे अहिंटा एकटा नीक लोक छि .
अहाँक सफलताक राज त
कहियो ने कियो कही सकैत अछि
अहाँ अपने लेल हरान रहैत छि
आ अहिंटा एकटा नीक लोक छि .
सर समाज सँ कोनो मतलब नहि रखलौहं
परदेश में दूमंजिला मकान बना लेलौहं
गाम घर सँ स्नेह रखनिहर कें
अपनेमने अहाँ बुडिबक बुझहैत छि .
अप्पन सभ्यता संस्कृति अकछाह लगइए
ओकरा अहाँ बिसरै चाहैत छि
परदेश में रंग-बिरंगक संस्कृति में
अहाँ के नीक लगइए खूब मगन रहैत छि.
धियो-पूता के मातृभाषा नहि सिखबैत छि
ओकरा अंग्रेजी टा बजै लेल कहैत छि
मत्रिभाषक आंदोलन चलौनिहर बुडिबक
आ अहिंटा एकटा नीक लोक छि.
गाम घर पछुआएल अछि रहिए दिऔ
नहि कोनो माने मतलब राखू
अहाँ ए.सी. में बैसल आराम करैत छि
अहिंटा एकटा नीक लोक छि.
सर-समाज सँ स्नेह रखलौहं तहि द्वारे
हम बकलेल बुडिबक घोषित भेल छि
अहाँ रुपैया कम ढ़ेरी लगेलौहं
तहि द्वारे अहिंटा एकटा नीक लोक छि.
खली रुपैया टा चिन्हैत छि
अहाँ बिधपुरौआ बेबहर करैत छि.
पाइए अहाँ लेल सभ किछु
आ अहिं टा एकटा नीक लोक छि.
कियो पहिने कियो बाद में
मेहनत करनिहार त सफल हेबे करत
ओकरा अहाँ प्रोत्साहित कियक नहि करैत छि?
यौ सफलतम मनूख अहिंटा एकटा नीक लोक छि.
कवि- किशन कारीगर
©काॅपिराइट