अंहकार!
तुम छोड़ देना ये मेरे भरतार,ये डुबो देता है मन का अंहकार।
रावण ने अपनी लंका डुबोई और डुबोया परिवार।।
दूर करता है,सुख चैन से खा जाता है विवेकाधिकार।
ये अवगुण बन कर,हावी होता कर देता बंटाधार।
ईश्वर की भक्ति से दूर रखता, और दूर करता घर परिवार।
हमेशा सम रहो चाहे परिस्थिति हों बेकार।
अच्छे अच्छे मिट गये, जिसने पाला अंहकार।।