#अंसुवन के मोती
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★ #अंसुवन के मोती ★
पीरचिरैया रह जाए न सोती
बचाकरके रखना अंसुवन के मोती
बचाकरके रखना . . . . .
चंदा की चांदनी और मेरी भी
सांसों की बगिया चाह आस बोती
बचाकरके रखना . . . . .
नदिया किनारे इक बेरी का बूटा
हिरदेहरीतिमा निज भास खोती
बचाकरके रखना . . . . .
खंडित सपने वचनों की किरचें
प्रीत शूद्राणी बहुत बोझ ढोती
बचाकरके रखना . . . . .
विछोह की वेला ज्यों वंशीछेदन
अंजनकलुष को स्मृतिगंग धोती
बचाकरके रखना . . . . .
दूर पास और धुर अंतस में
हंसती तृषामिलन और कभी रोती
बचाकरके रखना . . . . .
चतुर सुजान बहुत जगती के वासी
मतिमूढ़ मैं नैनाहारी रही सोती
बचाकरके रखना . . . . .
मैं इस पार मेरे उस पार साजन
होती जो होता मैं पी संग होती
बचाकरके रखना . . . . .
वयवाटिका उमंगों के छौने
पथवीथिका विधनामालिन भिगोती
बचाकरके रखना . . . . .
जोतिवंत ज्योति जलाए ही रखना
छूट न जाए मेरी जोतनेह बिनजोती
बचाकरके रखना . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२