अंधेर नगरी
शीर्षक: अंधेर नगरी
एक व्यापारी था जिसको अपना होटल चलाना मुश्किल हो रहा था क्योंकि मँहगाई की वजह से खाना बनाने के लिए उपयोग होने वाला कच्चा राशन काफी महँगा हो रहा था। उसे अपने खाने की कीमत बढ़ानी थी लेकिन वह बढ़ा नही पा रहा था। क्योंकि राजा की अनुमति के बिना बढ़ाना संभव नही था। लेकिन बढ़ाना अति आवश्यक था तो उसने सोचा राजा से चलकर बात किया जाय, क्या पता राजा ही कोई हल निकाल दे।
काफी सोचने विचारने के बाद व्यापारी राजा के दरबार मे पहुंचकर अपनी अर्जी लगाई और राजा से मिलकर अपनी बात रखने का समय मांगा तो उसे अगले दिन राज दरबार में आकर अपनी बात रखने का मौका दिया गया। अगले दिन व्यापारी नियत समय पर राज दरबार पहुँचा। और अपनी बारी का इंतजार करने लगा। जैसे ही व्यापारी को अपनी समस्या कहने को कहा गया तो व्यापारी ने विस्तार से राजा के सामने अपनी बातों को रखा और राजा से कृपापूर्वक उसकी समस्या पर विचार करने को कहा। समस्या गंभीर थी क्योंकि व्यापारी से राजकोष को अच्छा खासा कर मिलता था तो राजदरबार व्यापारी को नाखुश नही करना चाहता था और दाम बढ़ाते तो जनता में आक्रोश बढ़ने का खतरा था। राजदरबार किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आ रहा था करें तो क्या करें। काफी सोचने विचारने के बाद भी जब कोई हल नही निकला तो व्यापारी से कहा गया की आज तो कोई मुनासिब हल मिल नही रहा है तो कल तुम भी अपनी तरफ से इसके लिए कोई हल सोचकर आना और हमारा मंत्रिपरिषद भी कल तक कुछ हल सोचने की कोशिश करता है कल हम इस मुख्य मुद्दे पर फिर से चर्चा करेंगे।
अगले दिन व्यापारी फिर नियत समय पर राजदरबार पहुँचा और एक कोने में खड़ा हो गया। जब राजा राजदरबार में पहुँचा तो राजा को याद दिलाया गया कि व्यापारी वाली समस्या का हल खोजना आज का मुख्य मुद्दा है। फिर राजा ने सभी मंत्रियों सहित व्यापारी को भी इसका हल बताने को कहा गया। राजा ने सबके द्वारा सुझाए हल को बड़े ध्यान से सुना। व्यापारी ने भी अपनी तरफ से खाने में कम से कम 10 प्रतिशत दाम में बढ़ोतरी की माँग की थी और वादा किया कि इससे उसके व्यापार में कोई हानि नही होगी और वह राजकोष में भी यथासंभव अपना योगदान कर पायेगा। फिर काफी सोच विचार करने के बाद राजा ने व्यापारी से कहा कि तुम जाओ और अपने खाने के दामों में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दो। लेकिन सबने एक स्वर में इसका विरोध करते हुए कहा कि इससे जन आक्रोश बढ़ने का खतरा है और यहाँ तक कि व्यापारी भी इस बढ़ोतरी के लिए तैयार नही था। फिर राजा ने मंत्रिपरिषद से कहा कि सभी शांत हो जाइए और व्यापारी से कहा कि तुम जाओ और जैसा कहा है वैसा ही करो। और मंत्रिपरिषद को आदेश दिया कि इससे कोई भी स्थिति पैदा होने पर उन्हें यानी राजा को तत्काल संज्ञान में दिया जाय।
काफी सोचविचार करने के बाद व्यापारी सोचा अगर राजा की बात नही मानी तो राजद्रोह का मुकद्दमा चल सकता है और नही किया तो उसका व्यापार चौपट हो जाएगा और इससे वह और उसका परिवार पूर्णतः बर्बाद हो जाएगा। इसीलिए व्यापारी राजा के कहे अनुसार खाने के दामों में 50 प्रतिशत वृद्धि कर दी। कुछ लोग जो इस अतिरिक्त भार को सहन कर सकते थे उन्होंने खुशी खुशी कर लिया लेकिन जो बहुसंख्यक जनता थी जिन्हें दो समय का खाना भी बड़ी मुश्किल से मिल पा रहा था उन्होंने इसका विरोध करना शुरू किया लेकिन व्यापारी अपने फैसले पर अडिग रहा। वह फैसला वापस लेने को कतई तैयार नही था तो थक हारकर लोगो ने राजदरबार मे इस बाबत अर्जी लगाई। पहले तो कुछ दिनों तक इस अर्जी को टाला गया जैसे कुछ हुआ ही नही हो। लेकिन जब लगातार आम जनमानस इसके बाबत आकर सवाल करने लगी तो इसके बाबत राजदरबार में अर्जी की सुनवाई के लिए तारीख तय हुई वो भी कुछ महीने बाद की लेकिन जनता आतुर थी कि यह जनमानस का मुद्दा है और राजदरबार को इसे प्राथमिकता पर सुनना चाहिए फिर राजदरबार ने एक सप्ताह का समय दिया और कहा गया कि जिन भी लोगों को या संगठनों को इस बाबत कुछ भी कहना हो अपनी बात आकर कह सकता है। पूरा राजदरबार अपनी जनता की बातों को सुनने को तैयार है। इससे लोगों के मन में यह बात फैल गयी कि राजा जनता के लिए कितना सोचता है। क्योंकि जिस राजदरबार के पास अर्जी सुनने का समय नही था और अब वह सप्ताह के भीतर जनता के मुद्दे को सुनने को तैयार हो गया। राजा बड़ा दयालु है।
नियत दिन पर राजदरबार में इस बाबत जिनको भी जो भी कहना था सभी उपस्थित हुए और तय समय पर सुनवाई शुरू की गई। और सभी अपनी अपनी बातों से राजा को अवगत कराने लग गया। काफी दलीलों को सुनने के बाद राजा ने कहा कल इसी समय पर फिर से राजदरबार लगेगा और मंत्रिपरिषद अपना फैसला सुनाएगी। अगले दिन फिर से राजदरबार शुरू हुई और कहा गया कि व्यापारी को पकड़कर राजदरबार में उपस्थित किया जाय हम इस व्यापारी से इस तरह के अत्याचार के बारे में जानना चाहते है कि उसने आखिर ऐसा क्यों किया। और सैनिकों ने उस व्यापारी को राजदरबार में पेश किया। और राजा ने उसके द्वारा खाने के दामों में इस बढ़ोतरी का कारण पूछा और उससे कहा गया कि वह अपना पक्ष रख सकता है। क्योंकि राजदरबार नही चाहती है कि उसपर यह इल्जाम लगे कि वह एक पक्ष की बात सुनकर ही फैसला सुना दिया। तो व्यापारी ने डरते डरते अपना पक्ष रखा और बताया कि क्यों उसके लिए खाने के दामों में बढ़ोतरी अति आवश्यक हो गयी थी। तो राजा ने कहा कि तुम हमारी अनुमति के बगैर खाने के दामों में बढ़ोतरी नही कर सकते हो और अभी यह मंत्रिपरिषद यह फैसला सुनाती है कि तुम अभी इसी समय अपने खाने के दामो में 50 प्रतिशत वृद्धि के फैसले में 50 प्रतिशत की कमी करोगे नही तो तुम्हें देश निकाला दे दिया जाएगा। व्यापारी ने आदेश मानते हुए कहा की जैसा मंत्रिपरिषद कहे वैसा ही होगा और उसी समय व्यापारी ने अपने बढ़ाये हुए दामो में 50 प्रतिशत की कटौती का एलान कर दिया। पूरा राजदरबार खुशियों से झूम उठा सभी तरफ राजा और व्यापारी की ही बातें होने लगी और सभी तरफ राजा की जय जयकार होने लगी।
अगले दिन से 100 रुपैये का सामान 125 का बिकने लगा जहाँ व्यापारी 100 का सामान 110 में बेचना चाहता था वही वह अब 125 में बेच रहा था। इस युक्ती से सभी खुश हुए राजा को अतिरिक्त कर मिलने लगा। व्यापारी को अधिक मुनाफा मिलने लगा और जनता चारो तरफ राजा की जय जयकार करते हुए ख़ुशी से झूम उठी कि राजा उनके दिल की बात सुनता है और कितना दयालु है। राजा के चाटुकार व्यापारी को देशभक्त और राजा को जनता का सबसे बड़ा हितैषी कहकर प्रचारित करने में लगे हुए थे। लेकिन विचार शून्य जनता उस प्रचारित किये हुए सामग्री पर आँख मूँदकर विश्वास कर दिन रात अपने राजा के गुणगान में लगी हुई थी।
©✍️ शशि धर कुमार
नोट: यह कहानी पुर्णतः काल्पनिक है।